बलि चढ़ता भविष्य

तेजस्वी नीतीश की घोषणाओं की आलोचना कर रहे हैं। मगर बात वोट खरीदने की हो, तो जुबानी शाहखर्ची में वे भी कोताही नहीं बरतते। और यह कहानी देश भर की है। इस होड़ में जनता के भविष्य की बलि चढ़ रही है। बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जिन 75 लाख परिवारों के पास… Continue reading बलि चढ़ता भविष्य

ऐसे भी क्या खेलना!

यूएई में हुआ एशिया कप क्रिकेट टूर्नामेंट खेल से इतर बातों के लिए ज्यादा याद रखा जाएगा। यहां भारतीय खिलाड़ियों के कंधों पर अपनी सरकार और क्रिकेट बोर्ड की डगमगाहट को संभालने का बोझ भी डाल दिया गया था। एशिया कप में भारतीय क्रिकेट टीम आरंभ से अंत तक चैंपियन की तरह खेली। जिस टूर्नामेंट… Continue reading ऐसे भी क्या खेलना!

धन किसका, कर्ज कहां?

आबादी का छोटा-सा जो हिस्सा वित्तीय अर्थव्यवस्था से जुड़ा है, उसकी चमक बढ़ी है। मगर विषमता इतनी तेजी से बढ़ी है कि वित्तीय सेवाएं देने वाली जर्मन मूल की बहुराष्ट्रीय कंपनी- एलायंज ग्रुप- ने भी चेतावनी दी है। पहले खबर का अच्छा पहलूः 2024 में भारतीय घरों की औसत आमदनी बढ़ने की रफ्तार और तेज… Continue reading धन किसका, कर्ज कहां?

आंशिक, लेकिन सही दिशा

हालिया कदमों के बावजूद आयोग के सामने साख संबंधी कई चुनौतियां हैँ। उसे ये धारणा तोड़नी होगी कि चुनाव कार्यक्रम एक दल विशेष की सुविधा से तय होता है और आदर्श आचार संहिता लागू करने में आयोग भेदभाव करता है। आखिरकार निर्वाचन आयोग को आभास हुआ है कि उसकी साख पर देश में गंभीर सवाल… Continue reading आंशिक, लेकिन सही दिशा

हर प्रतिरोध नाजायज है?

यह समझने की जरूरत है कि मांगों पर तत्परता से ध्यान ना देने अथवा अनंत और ऊबाऊ वार्ताओं से लोगों का असंतोष आक्रोश में बदलता है। उससे गतिरोध की स्थिति बनती है, जो अमन-चैन के लिए ठीक नहीं है। केंद्र ने लेह में हुई हिंसा की सारी जिम्मेदारी सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक पर डाल दी… Continue reading हर प्रतिरोध नाजायज है?

मुद्दे की तलाश में

वोट चोरी गंभीर आरोप है, मगर इससे विपक्षी दल, उनके कार्यकर्ता और मध्य वर्ग के कुछ हिस्से जितना उत्तेजित हुए हैं, उतना आम जन के स्तर पर नहीं हुआ है। आम जन को ऐसे मुद्दे दूर से ही छू पाते हैं। राहुल गांधी ने अब कहा है कि भारत के युवाओं की सबसे बड़ी समस्या… Continue reading मुद्दे की तलाश में

समस्या की जड़ जहां

आय कर और जीएसटी दरों में कटौती जैसे कदमों से लोगों को बेशक कुछ राहत मिली है, लेकिन असल सवाल है कि क्या इससे लोगों के हाथ में इतना पैसा बचने लगेगा, जिसे खर्च करने के वे उपाय ढूंढने लगेंगे? भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने यह पहली बार नहीं कहा… Continue reading समस्या की जड़ जहां

जाति जाए तो कैसे?

हाई कोर्ट ने राय जताई कि जाति आधारित रैलियां राजनीतिक मकसद से आयोजित होती हैं, जिनसे समाज में टकराव बढ़ता है। यह सार्वजनिक व्यवस्था एवं राष्ट्रीय एकता के खिलाफ है। यूपी सरकार ने कोर्ट की राय का समर्थन किया है। जातीय पहचान और प्रतीकों का प्रदर्शन इतने भौंडे स्तर तक पहुंच चुका है कि उस… Continue reading जाति जाए तो कैसे?

अब तो बहस छिड़े

लोकतंत्र में विचार जताने की आजादी पर कोई तलवार नहीं लटकनी चाहिए। अधिक से अधिक यह हो सकता है कि मानहानि दीवानी श्रेणी का अपराध रहे, हालांकि इसके तहत भी प्रतीकात्मक दंड का प्रावधान ही होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के यह टिप्पणी स्वागतयोग्य है कि मानहानि को अपराध की श्रेणी से हटाने का समय आ… Continue reading अब तो बहस छिड़े

भविष्य को गिरवी रखना

स्वस्थ नियम है कि सरकारों को कर्ज सामान्यतः निवेश के लिए ही लेना चाहिए। मगर ताजा रुझान यह है कि सरकारें कर्ज के जरिए रूटीन खर्च जुटा रही हैं। साथ ही एक बड़ी रकम वोट खरीदने पर खर्च किया जा रहा है। राज्यों के ऊपर कर्ज के बढ़ते बोझ पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी)… Continue reading भविष्य को गिरवी रखना

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