आज भी ज़रूरी हैं हस्तलिखित पत्र

मोबाइल और इंटरनेट आ जाने के बावजूद पत्रों का महत्व आज भी बरकरार है। यही कारण है कि हस्तलिखित पत्रों की अहमियत को बढ़ावा देने और लोगों को लेखनी उठाकर कागज़ पर अपने मन के भाव लिखने के लिए प्रेरित करने हेतु विश्व पत्र लेखन दिवस प्रतिवर्ष 1 सितम्बर को मनाया जाता है। 1 सितंबर-… Continue reading आज भी ज़रूरी हैं हस्तलिखित पत्र

भारत आकर क्यों घिरे?

इल्जाम है कि पिछले हफ्ते हुई भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री दहल ने नेपाल को पूरी तरह भारत पर निर्भर बना दिया। जबकि इस यात्रा के दौरान नेपाल को ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ। नेपाल के विपक्षी दलों के साथ-साथ बुद्धिजीवियों और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा भी प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल को घेरने में जुट गया है। उनका इल्जाम है कि पिछले हफ्ते हुई भारत यात्रा के दौरान दहल ने नेपाल को पूरी तरह ‘भारत पर निर्भर’ बना दिया। इस यात्रा के दौरान नेपाल को ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ।

ट्रंप की डींगें और 420 साल की सजा वाले आरोप!

डोनाल्ड ट्रंप अब अमेरिका के सभी पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों में सबसे अलग बन गए हैं। वे पहले ऐसे पूर्व राष्ट्रपति हो गए है जिन पर फ़ेडरल कानूनों को तोड़ने के आरोप लगे हैं। संघीय सरकार के वे कानून हैं जिनकी रक्षा करने की शपथ उन्होंने करीब छह साल पहले ली थी। अब वे खुद राष्ट्रीय सुरक्षा, गोपनीयता, जासूसी संबंधी कानूनों के उल्लंघनकर्ता के आरोपी बने है।

ब्रिटेन में भी ट्रंप जैसा बोरिस का हल्ला

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति इन दिनों जिस मोड़ पर है, वह जितनी दिलचस्प है उतनी ही चिंताजनक भी। एक ओर डोनाल्ड ट्रंप है, जो मुकदमों का सामना करते हुए भी रिपब्लिकन पार्टी और उसके मतदाताओं के दिलों पर राज कर रहे हैं। उनके दुबारा व्हाईट हाउस पहुंचने की चर्चा आम है। इसका अमेरिकी लोकतंत्र और दुनिया में उसके दबदबे पर असर पड़ेगा। दूसरी ओर इंग्लैंड के ट्रंप हैं बोरिस जॉनसन। वे भी भीड़ में जोश और उन्हे बहकाने की तरकीबें जानते हैं

टूटते राजमार्ग और पुल-पुलिया, टपकता हवाई अड्डा और सेंट्रल विस्टा…!

भोपाल। कहते हैं की नीव मजबूत हो तब इमारत भी मजबूत बनती है, लगता है कि सांप्रदायिक और धार्मिक विभाजन पर चुनाव जीतने से बनी सरकार की इमारत धसकने लगी है। मोदी जी के कुछ फैसले बानगी के तौर पर देखे जा सकते हैं। मौजूदा संसद भवन को संग्रहालय बनाने के लिए अरबों रुपये की लागत से बना विवादित सेंट्रल विस्टा में संसद का वर्षा ऋतु का अधिवेशन की ज़ोर –शोर की घोषणा, आखिरकार उस नव निर्मित इमारत (स्मारक कहना ज्यादा उचित होगा) में नहीं हो सकी ! उसी भांति जैसे कालाधन खत्म करने की घोषणा के साथ दो हजार रुपये के नोट बंद किए गये थे अथवा मंहगाई पर रोक लगाने की तरकीब भी बताई गयी थी। पर हुआ क्या टमाटर और अदरख तथा हरी मिर्च जैसी सब्जियां ही सैकड़ा पार करके एक किलो में मिल रही हैं। वैसे अंडमान के पोर्ट ब्लेयर में नव निर्मित हवाई अड्डे का नामकरण संघ और बीजेपी के युग पुरुष सावरकर के नाम पर हुआ परंतु द्वीप की पहली ही बरसात में ना केवल वहां पानी भर गया वरन उसमे छत पर सजावट के लिए लगे फाल्स सीलिंग भी फाल्स ही साबित हुई और लटक गयी

उफ! आत्मघाती 21वीं सदी

हर दौर वक्त की छाप लिए होता है। वह राहु-केतु-शनि की प्रवृत्तियों के अपने साये में जीव-जंतुओं का खेला बनाए होता है। तभी तो मौजूदा दौर विनाश के विषाणुओं, वायरस का है। मानो समय थक गया है। पृथ्वी छीज गई है। पिछली सदी के आखिर में व इक्कीसवीं सदी के आरंभ में उम्मीदों का उत्साह था। नई सहस्त्राब्दी, ग्लोबलाइज्‍ड जीवन, तकनीक-संचार-डिजिटल क्रांति की भविष्यगामी उमंगें थीं। मिलेनियम पीढ़ी, भावी पीढ़ियों का सुनहरा वक्त आता लगता था। इतिहास खत्म होने मतलब लड़ाई-झगड़े, युद्ध की समाप्ति की भविष्यवाणी थी। टाइम कैप्सूल के गड्ढों में अतीत दफन होता हुआ था। तभी अचानक 9/11 हुआ।

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