इस वर्ष भारत के चमकने की कथा डगमगाती नजर आईं। साल खत्म होते-होते भारतवासियों का यह विश्वास डोलता दिखा है कि देश के उदय को अब रोका नहीं जा सकता और हम विकसित देश एवं वैश्विक महाशक्ति बनने की राह पर हैं।
साल 2025 आज यह अहसास छोड़कर हमसे विदा हो रहा है कि जिन नैरेटिव्स ने बीते दशक में भारत की आबादी के बड़े हिस्से को मोहित कर रखा था, गुजरे 12 महीनों में वे काफी हद तक बिखर चुके हैं। इस घटनाक्रम को इन तीन प्रतीकों से समझा जा हैः डॉनल्ड ट्रंप, ऑपरेशन सिंदूर, और रुपया। गुजरे वर्षों के दौरान अमेरिका ने अपनी सुरक्षा रणनीति में भारत को खास तरजीह दी थी, जिससे पश्चिम में भारतीय नेतृत्व का रुतबा बढ़ा दिखता था। मगर अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप ने रणनीति बदल दी है। बल्कि ऐसा लगता है कि गुजरे वर्षों के दौरान अमेरिका द्वारा ज्यादा महत्त्व देने से भारत को जो फायदा मिला, ट्रंप अब उसकी कीमत वसूल रहे हैं! इससे भारत की अंतरराष्ट्रीय हैसियत प्रभावित हुई है।
ट्रंप के टैरिफ युद्ध का भी बहुत खराब असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। उधर उनकी आंतरिक नीतियों से अमेरिका में विदेशी विरोध के बने माहौल से सबसे बुरी तरह प्रभावित वहां भारतीय मूल के लोग हुए हैं, जिसका असर भी भारतीय मनोविज्ञान पर पड़ा है। इसी बीच ऑपरेशन सिंदूर हुआ, जिस दौरान दुनिया में भारत अकेला खड़ा नजर आया। चार दिन के युद्ध में भारत को मिली जमीनी कामयाबियों के बावजूद दुनिया में उलटी कहानी प्रचारित हुई। पश्चिमी मीडिया ने भी उसी नैरेटिव को आगे बढ़ाया, जिसे भारत चीनी प्रचार तंत्र के माध्यम से पाकिस्तान का दुष्प्रचार मानता है।
इस प्रकरण ने विदेशों में अपनी कथा बताने की भारत सरकार की क्षमता में लोगों का भरोसा क्षीण किया है। इसी बीच अमेरिकी टैरिफ, विदेशी निवेशकों के पैसा निकालने, भारतीय कारोबारियों के विदेश में मौका तलाशने आदि की तेज हुई घटनाओं ने रुपये की कीमत को रिकॉर्ड स्तर तक गिरा दिया। इसकी आंच भारत की आर्थिक संभावनाएं पर पड़ी है। आईएमएफ ने भारत के आर्थिक आंकड़ों को फिर सी ग्रेड में रखकर चिंता बढ़ाने में अपना योगदान दिया है। तो कुल मिलाकर वर्ष के खत्म होते-होते भारतवासियों का यह विश्वास डोलता दिखा है कि देश का उदय अब रोका नहीं जा सकता और हम विकसित देश एवं वैश्विक महाशक्ति बनने की राह पर हैं।
