एक तस्वीर और “अजेय चीन”?

वह महज तस्वीर नहीं थी।  केवल एक रस्म नहीं थी। बल्कि भविष्यवाणी, आकाशवाणी की तरह गूंजी। फोटो के बीच में शी जिनपिंग, उनकी एक ओर व्लादिमीर पुतिन, दूसरी ओर किम जोंग-उन। ये तीनों बीजिंग में एक विराट सैन्य परेड के मंच पर सीढ़ियाँ चढ़ते हुए। मौक़ा गंभीर था: द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति की 80वीं… Continue reading एक तस्वीर और “अजेय चीन”?

भारत अब कूटनीति भी दिखाता है!

कूटनीति गुपचुप मौन में होती है। पर इन दिनों भारत कूटनीति और सैन्य ऑपरेशन (आरपेशन सिंदूर) दोनों का एक सा प्रदर्शन कर रहा है। भारत अपनी कूटनीति को साउथ ब्लॉक के गलियारों की मौन रणनीति के मौन परिणामों से नहीं, बल्कि ड्रॉइंग रूम, फ़ोन की स्क्रीन और खाने की मेज़ों तथा फोटोशूट से दिखलाता है।… Continue reading भारत अब कूटनीति भी दिखाता है!

उमस, थकान और सीलन का समय

हवा में थकान तैर रही है। जैसे उमस, नमी हर चीज़ से चिपक गई हो — राजनीति से लेकर अर्थव्यवस्था तक, और हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी की लय सभी में। हर मानसून में ऐसा ही नुकसान दोहराता है। हर बहस उन्हीं घिसे-पिटे तर्कों में उलझी रहती है। हर बहस उसी रटे-रटाए विमर्श में घूमती रहती… Continue reading उमस, थकान और सीलन का समय

नीतीश की ‘मुफ्त की रेवड़ी’ और विपक्ष की चुनौती

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वह हो रहा है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार एक के बाद एक लोक लुभावन घोषणाएं कर रही हैं। पिछले 20 साल से सरकार चला रहे नीतीश ने कभी ऐसी राजनीति नहीं की। वे लोक लुभावन घोषणाओं और रेवड़ी बांटने की योजनाओं… Continue reading नीतीश की ‘मुफ्त की रेवड़ी’ और विपक्ष की चुनौती

अब निशाने में अमेरिका है!

राजनीति और कूटनीति का मौसम चेतावनी नहीं देता। उसमें अचानक घटनाएं घटती है। पटकथा में अचानक मोड आता है और घटना विशेष पटकथा को पलट डालती है। बहिष्कार का अब नया सुर शुरू है।  आधिकारिक रूप से घोषित नहीं, लेकिन संकेत साफ़ हैं। इस बार निशाना है अमेरिका के बहिष्कार और अमेरिका शुरू से शैतान… Continue reading अब निशाने में अमेरिका है!

असमानता और नियति ‘सुपरपावर इन वेटिंग!

लंदन के द इकॉनोमिस्ट ने ठिक लिखा कि “यदि अमेरिका भारत को अलग-थलग करता है, तो यह उसकी ऐतिहासिक भूल होगी। जबकि भारत के लिए अपनी सुपरपावर बनने की दावेदारी को परखने का यह मौका है।” पहली नज़र में वाक्य सुकून देता है — जैसे अमेरिका ग़लती करेगा अगर डगमगाया, और भारत नियति के द्वार… Continue reading असमानता और नियति ‘सुपरपावर इन वेटिंग!

मुंबई में अनिश्चितता और न्यूयार्क में भरोसा!

कुछ दिनों से मैं मुंबई में हूँ। यह महानगर  उभरते भारत की झिलमिलाहट बतलाता हुआ है। काँच की इमारतें मानसून के आसमान को छूती हैं। नया कोस्टल रोड अरब सागर पर किसी रिबन की तरह खुलता चला जाता है। यह वही शहर है जो न्यूयॉर्क बनने का सपना देखता है। तभी लगातार निर्माणाधीन स्काइलाइन, वॉल… Continue reading मुंबई में अनिश्चितता और न्यूयार्क में भरोसा!

इक्कीसवीं सदी में अकाल, भूख!

हम असाधारण समय में जी रहे हैं। इक्कीसवीं सदी में कैसी सुर्ख़ियां पढ़ने को मिल रही है। बात दो टूक है।   साफ कहां जा रहा है कि “ग़ाज़ा में अकाल घोषित हो चुका है। क्या कुछ बदलेगा?” सवाल पूछे जाने से पहले ही जवाब तय था: नहीं। और यही समय की असाधारणता याकि असाधारण क्रूरता… Continue reading इक्कीसवीं सदी में अकाल, भूख!

तालिबानी राज में आधी आबादी जंजीरों में!

विडंबना है कि अफ़ग़ानिस्तान ने 15 अगस्त को जब स्वतंत्रता दिवस मनाया, तो गुलाब की पंखुड़ियाँ उन मर्दों पर बरसीं जिन्होंने आधे देश को पिंजरे में कैद कर रखा है। तालिबान का शासन अब दूसरे दौर के पाँचवें साल में दाख़िल है। इन पांच वर्षों में कुछ बदला नहीं। वह दुनिया का इकलौता देश है… Continue reading तालिबानी राज में आधी आबादी जंजीरों में!

अकेले मुंह फुलाये जे़लेंस्की और…

एक तस्वीर और एक हज़ार शब्दों के बराबर! हां, एक कोने में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जे़लेंस्की मुंह फुलाये अकेले खड़े और और उनके चारों तरफ बाकी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री एक दूसरे के साथ हंस बोल रहे हैं। क्या ऐसी तस्वीर उन मतभेदों और दरारों को नहीं दिखलाती जो विल्नुस में नाटो शिखर सम्मेलन के बाद उभरीं है।

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