‘बारामूला’ केवल एक हॉरर फ़िल्म नहीं है, यह ऐतिहासिक भूल-चूक, सामूहिक ज़ख्म और पहचान की स्थिति पर टिप्पणी भी है। फ़िल्म बताती है कि कैसे राजनीतिक हिंसा केवल भौतिक नहीं रहती; वह स्मृति, पहचान और पीढ़ियों के रिश्तों में दर्ज हो जाती है। यहां भूत-प्रेत का रूप वास्तव में उन अनसुलझी चोटों का प्रतीक है… Continue reading उन वादियों से: ‘बारामूला’
