गौतम अडानी का झारखंड प्रेम गहराता जा रहा है। उन्होंने धनबाद में आईआईटी के दर्जे वाले प्रतिष्ठित इंडियन स्कूल ऑफ माइनिंग यानी आईएसएम में एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया है। इस संस्थान का महत्व यह है कि देश में वैज्ञानिक शिक्षा को समर्पित संस्थानों में इसको सबसे ऊपर रखा जाता है। 1950 में राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू एक साथ इस संस्थान का निरीक्षण करने पहुंचे थे। इसके बाद 1953 में फिर राजेंद्र बाबू इस संस्थान का दौरा करने पहुंचे थे। पिछले दिनों इसके दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू शामिल हुईं थीं। उसी आईएसएम को शताब्दी समारोह को संबोधित करने गौतम अडानी पहुंचे थे। उन्होंने इस संस्थान के एक सौ साल पूरे होने के मौके पर भाषण दिया और कई बड़ी घोषणाएं कीं। उन्होंने आईएसएम के छात्रों के लिए पेड इंटर्नशिप का ऐलान किया और साथ ही 3एस माइनिंग एक्सलेंस सेंटर की स्थापना की घोषणा भी की।
इस मौके पर दिया गया उनका भाषण बहुत अहम है। उन्होंने विकसित देशों की ओर से दिए जा रहे कार्बन उत्सर्जन कम करने की नसीहत का विरोध किया। उन्होंने कांग्रेस और आजादी के समय की सरकार की दूरदर्शिता की तारीफ की और कहा कि उसी दूरदर्शिता का नमूना है कि आईएसएम जैसे संस्थान की स्थापना हुई। इसके बाद अडानी ने कहा कि पुरानी अर्थव्यवस्था कही जाने वाली माइनिंग के बिना नई अर्थव्यवस्था का निर्माण और मजबूती संभव नहीं है। जाहिर है उनकी नजर झारखंड की खनन संपदा और उसके दोहन पर है।
कुछ समय पहले वे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी मिले थे। तब से इस बात की चर्चा चल रही है कि हेमंत सोरेन अपने निजी हित और राज्य के लिए धन की जरुरतों को देखते हुए भाजपा के साथ जा सकते हैं। यानी अपनी सरकार में एक और इंजन जोड़ सकते हैं। दुर्लभ खनिजों और अन्य खनिज संपदा को देखते हुए देश के बड़े उद्योगपति ऐसा चाहते हैं तो इसमे हैरानी नहीं होगी। इस बीच खबर है कि पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन 15 जनवरी से स्विट्जरलैंड के दावोस में होने वाले सालाना वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम यानी डब्लुईएफ की बैठक में हिस्सा लेंगे। वे दुनिया को बताना चाह रहे हैं कि भारत की कुल खनिज संपदा का 40 फीसदी हिस्सा अकेल झारखंड के पास है।
