पश्चिम बंगाल में चुनाव है और उससे पहले एक बार फिर मुस्लिम वोट बांटने की राजनीति शुरू हो गई है। यह पता नहीं है कि इसके पीछे कोई डिजाइन है या यह स्वाभाविक रूप से हो रहा है। लेकिन मुर्शिदाबाद के हुमायूं कबीर ने जैसी राजनीति शुरू की है वह उसी राजनीति का विस्तार है, जो पिछले चुनाव में फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने की थी। उन्होंने 2021 के चुनाव से ठीक पहले इंडियन सेकुलर फ्रंट के नाम से एक पार्टी बनाई थी। चुनाव में उन्होंने कांग्रेस और लेफ्ट मोर्चा के साथ तालमेल किया। इस गठबंधन में सीपीएम के नेतृत्व वाला लेफ्ट मोर्चा 180 सीटों पर लड़ा था, जबकि कांग्रेस 92 और इंडियन सेकुलर फ्रंट 32 सीटों पर लड़ा था। गठबंधन को 10 फीसदी से कुछ ज्यादा वोट मिले थे लेकिन सीट सिर्फ एक मिली थी। इंडियन सेकुलर फ्रंट के नौशाद सिद्दीकी भांगर सीट से जीते थे। उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार करीम रेयाजुल को हराया था।
अब नौशाद सिद्दीकी इंडियन सेकुलर फ्रंट को संभाल रहे हैं। इस बीच हिमायूं कबीर ने मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में बाबरी जैसी मस्जिद बनाने का ऐलान किया और छह दिसंबर को उसका शिलान्यास किया। इस कार्यक्रम में लाखों की संख्या में मुस्लिम पहुंचे और मस्जिद निर्माण के लिए करोड़ों का चंदा अभी तक मिल चुका है। हुमायूं कबीर फरवरी में कुरान का पाठ कराएंगे, एक लाख लोगों को मांस और चावल का भोज कराएंगे और उसके बाद मस्जिद का निर्माण शुरू होगा। इसके रास्ते में कोई बाधा नहीं है क्योंकि हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। अब सरकार का काम है कि वह सुरक्षा सुनिश्चित करे। ध्यान रहे बाबरी मस्जिद के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अयोध्या में पांच एकड़ जमीन दी गई है। वहां अभी मस्जिद का निर्माण शुरू नहीं हुआ है। लेकिन बाबरी मस्जिद के नाम से हुमायूं कबीर मुर्शिदाबाद में मस्जिद बनवा रहे हैं।
उन्होंने पार्टी बनाने का ऐलान किया और कहा है कि वे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया एमआईएम और इंडियन सेकुलर फ्रंट से तालमेल करेंगे। कहने को तो उन्होंने लेफ्ट और कांग्रेस से भी तालमेल की बात कही है लेकिन सबको पता है कि कांग्रेस और लेफ्ट ओवैसी की पार्टी के साथ तालमेल नहीं करेंगे। बिहार में ओवैसी की पार्टी ने इसकी कोशिश की थी। अब सवाल है कि क्या कबीर का गठबंधन पिछले चुनाव के लेफ्ट, कांग्रेस और आईएसएफ के गठबंधन से मजबूत होगा और भाजपा को रोकने में सक्षम होगा? और अगर भाजपा को रोकने में सक्षम नहीं है तो फिर क्यों मुस्लिम उस गठबंधन को वोट देंगे? यह सही है कि अगर हुमायूं कबीर, असदुद्दीन ओवैसी और नौशाद सिद्दीकी साथ आते हैं तो उस गठबंधन की मजबूत मुस्लिम पहचान होगी। लेकिन मुस्लिम मतदाता उस गठबंधन को वहीं वोट करेंगे, जहां उनको यह खतरा नहीं होगा कि उनका वोट बंटने से भाजपा जीत जाएगी। बाकी जगहों पर वे ममता बनर्जी को ही वोट करेंगे। हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि मुस्लिम वोट नहीं टूटेगा या कम टूटेगा तो ममता बनर्जी की जीत पक्की है। ममता बनर्जी की जीत हार का फैसला इस बात से होगा कि उनको हिंदू वोट कितना मिलता है। करीब 70 फीसदी हिंदू आबादी में से 30 फीसदी वोट भी उनको मिलता है तो उनका हारना नाममुकिन होगा। अगर भाजपा 70 फीसदी से ज्यादा हिंदू वोट हासिल करे तभी चुनाव जीत सकती है।
