बिहार विधानसभा चुनाव के बाद पहला सत्र संपन्न हो गया है और अब राज्यसभा के साथ साथ विधान परिषद की सीटों पर जोड़ तोड़ शुरू हो गई है। बिहार का मामला इसलिए दिलचस्प है क्योंकि राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश भी वहां से सांसद हैं। उनका कार्यकाल अगले साल अप्रैल में खत्म हो रहा है। क्या जनता दल यू की ओर से उनको फिर से राज्यसभा भेजा जाएगा? वे दो बार उच्च सदन के सदस्य रह चुके हैं। जानकार सूत्रों का कहना है कि उनको तीसरी बार भेजने की संभावना बहुत कम है। ध्यान रहे पिछले कई सालों से उनको जनता दल यू से ज्यादा भाजपा के करीब माना जा रहा है। जब उनके जदयू ने भाजपा से नाता तोड़ा तो उनकी नजदीकी भाजपा से बनी रही थी। लेकिन भाजपा भी अपने कोटे से उनको राज्यसभा में नहीं लाएगी। ध्यान रहे ऐसे ही जनता दल यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते आरसीपी सिंह भी भाजपा के करीब गए थे। वे केंद्र में मंत्री थे और जदयू ने उनको राज्यसभा नहीं भेजा तो भाजपा ने कोई मदद नहीं की तो उनका मंत्री पद भी गया और राज्यसभा से भी रिटायर हो गए।
अब सवाल है कि अगर हरिवंश तीसरी बार राज्यसभा नहीं आते हैं तो कौन होगा राज्यसभा का उप सभापति? मोटे तौर पर अंदाजा है कि उप सभापति का पद जनता दल यू के पास ही रहेगा। इस बार उसके दो सांसद रिटायर हो रहे हैं, हरिवंश और रामनाथ ठाकुर। इनमें से ठाकुर केंद्रीय मंत्री हैं। वे कर्पूरी ठाकुर के बेटे हैं। उनको फिर से राज्यसभा भेजा जाना तय है। सो, हो सकता है कि उनको उप सभापति बना दिया जाए क्योंकि बाकी दो लोग जो राज्यसभा में हैं उनमें से खीरू महतो को नहीं बनाया जा सकता है औऱ संजय झा केंद्रीय मंत्री बनना चाहते हैं। जानकार सूत्रों के मुताबिक हरिवंश की जगह जदयू की ओर से कोई दूसरा राजपूत चेहरा उच्च सदन में भेजा जा सकता है। पार्टी के एक महासचिव के नाम की चर्चा है। पहली बार राज्यसभा जाने वाले को उप सभापति बनाने की परंपरा नहीं रही है।
बिहार में अगर एनडीए की बात करें तो सबसे दिलचस्प मामला राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेंद्र कुशवाहा का है। पिछले साल लोकसभा चुनाव में हारने के बाद उनको तत्काल ही राज्यसभा भेजा गया था। उसका मकसद लोकसभा चुनाव में बिगड़े माहौल को ठीक करना था। इसका फायदा विधानसभा चुनाव में एनडीए को मिला। लेकिन उस समय भी उनके साथ खेला हो गया। राज्यसभा की दो खाली हो रही सीटों में से पहले उनको चार साल वाली सीट मिलनी थी, लेकिन उनको दो साल वाली सीट दी गई। विधानसभा चुनाव में भी उनको सिर्फ छह सीटें मिलीं। उनको एक विधान परिषद सीट का वादा किया गया था। इस वादे के आधार पर उन्होंने बिना विधायक बने अपने बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री बनवा दिया है। इसका मतलब है कि एमएलसी उनका बेटा बनेगा। उनकी पत्नी विधायक बन गई हैं। तभी उपेंद्र कुशवाहा की राज्यसभा की राह मुश्किल हो गई है। भाजपा ने सम्राट चौधरी को गृह मंत्रालय के साथ उप मुख्यमंत्री बना कर कुशवाहा समाज को बड़ा मैसेज दिया है। राजनीतिक रूप से उपेंद्र कुशवाहा की पोजिशन कमजोर हो गई है लेकिन भाजपा ने अगर वादा निभाया तो उनको सीट मिलेगी। भाजपा और जदयू के बीच दो दो सीट बंटने के बाद पांचवीं सीट उनको मिल सकती है।
