हालात यहां तक आ पहुंचे हैं कि भविष्य में संभावित आंदोलनों से निपटने की तैयारी अभी से शुरू कर दी गई है। बीपीआरएंडडी ने स्वतंत्र भारत में अब तक हुए तमाम आंदोलनों से संबंधित सूचना राज्य सरकारों से मांगी है।
नरेंद्र मोदी सरकार किसी प्रतिरोध या जन आंदोलन को जायज नहीं मानती, यह तो जग-जाहिर है। यहां तक कि प्रदूषण से परेशान होकर विरोध जताने के लिए इकट्ठे हुए लोगों से भी आज प्रशासन उसी तरह निपटता है, जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कथित खतरों से पेश आया जाता है। मगर अब हालात यहां तक आ पहुंचे हैं कि भविष्य में संभावित आंदोलनों से निपटने की तैयारी अभी से शुरू कर दी गई है। ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट (बीपीआरएंडडी) ने स्वतंत्र भारत में अब तक हुए तमाम आंदोलनों के अध्ययन के संदर्भ बिंदु तैयार कर लिए हैं।
उनसे संबंधित सूचना राज्य सरकारों से मांगी गई है। राज्यों से 1947 के बाद हुए तमाम आंदोलनों, खासकर 1974 के बाद हुए आंदोलनों के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी गई है। 1947 से 1973 तक के आंदोलनों को राष्ट्र निर्माण से संबंधित गतिविधि की श्रेणी में माना गया है, जबकि 1974 से हुए आंदोलनों को राजनीतिक श्रेणी का। इन तमाम आंदोलनों के सांगठनिक ढांचे, विचारधारा, कारण, जन गोलबंदी के लिए अपनाई रणनीति, हिंसा के संदर्भ, आंदोलन के वित्तीय स्रोतों आदि के बारे में राज्यों से विस्तृत सूचना इकट्ठा करने को कहा गया है। मकसद भविष्य में जन आंदोलनों को रोकने अथवा उन्हें संभालने की प्रामाणिक प्रक्रिया (स्टैंडडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर- एसओपी) तैयार करना है, जिस कार्य में केंद्र सरकार जुटी हुई है।
बीते सितंबर में गृह मंत्री अमित शाह ने बीपीआरएंडडी को एसओपी तैयार करने के लिए प्रतिरोध एवं आंदोलनों का व्यापक अध्ययन करने का निर्देश दिया था। अब यह कार्य शुरू कर दिया गया है। बहरहाल, इस कार्य के पीछे का नजरिया समस्याग्रस्त है। यह जन भावनाओं के प्रति अलोकतांत्रिक सोच को जाहिर करता है। जन आक्रोश की अभिव्यक्ति या अपनी किसी मांग मनवाने के लिए जनता के किसी हिस्से का शांतिपूर्ण आंदोलन की राह पकड़ना ऐसी गतिविधि नहीं है, जिससे निपटने की पूर्व तैयारी की जाए। उचित लोकतांत्रिक नजरिया ऐसी हर गतिविधि से संबंधित पक्षों से संवाद और जन समूहों की शिकायतों के निवारण की कोशिश करना है। इससे व्यवस्था में जन विश्वास मजबूत होता है। मगर वर्तमान शासकों को इसकी परवाह नहीं है।
