साल 2024 में पढ़ाई के लिए भारत आए हर एक छात्र के एवज में 28 भारतीय छात्र विदेश गए। तो नीति आयोग चाहता है कि यह ट्रेंड पलटे। भारत उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान का ‘केंद्र’ बने। इसका रोडमैप उसने बनाया है।
नीति आयोग ने भारत की उच्च शिक्षा के “अंतर-राष्ट्रीयकरण” का रोडमैप बनाया है। “अंतर-राष्ट्रीयकरण” से उसका तात्पर्य विदेशी छात्रों और शिक्षकों को भारत आने के लिए प्रोत्साहित करना है। इसके लिए उसने कार्ययोजना तैयार की है, जिसमें उल्लेख है कि 2024 में पढ़ाई के लिए भारत आए हर एक छात्र के एवज में 28 भारतीय छात्र विदेश गए। तो नीति आयोग चाहता है कि यह ट्रेंड पलटे। भारत उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान का ‘केंद्र’ बने। नीति आयोग का लक्ष्य है कि 2047 तक 11 लाख तक विदेशी छात्र हर साल भारत आएं, जबकि 2022 में 47 हजार विदेशी छात्र भारत पढ़ने आए थे।
इसे संभव बनाने के लिए नीति आयोग ने विश्व बंधु स्कॉलरशिप एवं फेलॉशिप शुरू करने, 10 बिलियन डॉलर के कॉर्पस के साथ भारत विद्या कोश नाम से राष्ट्रीय रिसर्च सॉवरेन फंड स्थापित करने आदि जैसे सुझाव दिए हैं। नीति आयोग की ये रिपोर्ट ठीक उस वक्त आई है, जब केंद्र सरकार ने संसद में विकसित भारत अधिष्ठान विधेयक- 2025 पेश किया है, जिसे शीतकालीन सत्र के दौरान संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया। उस बिल में भी उच्च शिक्षा के “अंतर-राष्ट्रीयकरण” की चर्चा है। विधेयक में उच्च शिक्षा के संचालन ढांचे में सिरे से बदलाव का प्रावधान किया गया है। संसद में विपक्ष ने आरोप लगाया कि इसके जरिए शिक्षा प्रशासन का केंद्रीकरण किया जा रहा है। हिंदी शब्दों को थोपने के इल्जाम भी लगाए गए।
तो सूरत यह उभरती है कि देश के अंदर ही शिक्षा प्रशासन के ढांचे, पाठ्यक्रम और माध्यम को लेकर मतभेद गहराते चले जा रहे हैं। वैसे भी, भारतीय उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और रोजगार से उसके संबंध को लेकर बहुत-सी शिकायतें मौजूद हैं। ऐसे में विदेशियों को कैसे लुभाया जाएगा? गौरतलब है कि छात्र या शिक्षक उन देशों का रुख करते हैं, जहां उन्हें सुरक्षित माहौल, स्वच्छ वातावरण, एवं आरामदायक स्थितियां मिलती हैं। साथ ही उच्चतर जीवन-स्तर मिलने की आस जहां मजबूत रहती है। भारत अगर यह सब प्रदान करने की ठोस कोशिश करे, तो अलग से “अंतर-राष्ट्रीयकरण” के प्रयासों की जरूरत शायद नहीं रहेगी। मगर फिलहाल तो बात महज नैरेटिव बनाने तक सीमित है।
