इस बार पुतिन की यात्रा इसलिए भी अहम है, क्योंकि इस पर कई दूसरे कोण से भी नजर रहेगी। यात्रा के दौरान क्या सौदे होते हैं और कैसा माहौल नजर आता है, इसकी निगरानी अमेरिकी अधिकारी जरूर करेंगे।
रूस के राष्ट्रपति गुरुवार को भारत आएंगे। 24 घंटों से अधिक समय तक वे नई दिल्ली में रहेंगे। इस दौरान रूस से रक्षा एवं कई अन्य समझौते होने की संभावना जताई गई है। जो सौदा हो सकता है, उसमें रूस से एस-500 एयर एवं मिसाइल डिफेंस सिस्टम को खरीदना भी है। बताया जाता है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान एस-400 सिस्टम कारगर रहा। इसलिए उससे अगली पीढ़ी की प्रणाली में भारत की दिलचस्पी बढ़ी है। इसके अलावा ऊर्जा आयात का मुद्दा भी चर्चा में आएगा। चर्चा है कि अमेरिका के दबाव के कारण भारत धीरे-धीरे रूस से कच्चे तेल का आयात घटा रहा है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक व्लादीमीर पुतिन के सामने द्विपक्षीय कारोबार में भारत के बढ़े व्यापार घाटे का सवाल रखा जाएगा।
संभव है कि भारत कच्चे तेल की खरीदारी घटाने का तर्क इसे बनाए। रूस से इन एवं अन्य मसलों पर क्या बातचीत होती है, यह अपने-आप में महत्त्वपूर्ण है। मगर इस बार की पुतिन की यात्रा इसलिए भी अहम हो गई है, क्योंकि इस पर कई दूसरे कोण से भी नजर रहेगी। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने खुद पुतिन से संवाद बनाए रखा है और यूक्रेन युद्ध रुकवाने की उनकी शर्तों के प्रति नरम रुख दिखाया है, मगर रूस से कारोबारी संबंध को लेकर उन्होंने भारत पर असाधारण दबाव डाला हुआ है। ऐसे में पुतिन की यात्रा के दौरान क्या सौदे होते हैं और किस तरह का माहौल नजर आता है, इसकी निगरानी उनके अधिकारी जरूर करेंगे।
आम समझ है कि इस यात्रा के परिणामों का असर भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए जारी वार्ता पर पड़ेगा। अमेरिका से ऐसा समझौता करना, जिसमें भारतीय उत्पादों पर लगे आयात शुल्क को कम किया जाए, भारत सरकार की प्राथमिकता है। जबकि रूस को अपनी तरफ बनाए रखना भी एक तरह की अनिवार्यता है। रूस से पारंपरिक संबंध तो अपनी जगह अहम हैं ही, हाल के वर्षों में भारत और चीन के बीच संवाद जोड़ने के लिए पुतिन प्रशासन पुल बना है। इसलिए पुतिन और ट्रंप दोनों खुश रहें, इसे सुनिश्चित करने की चुनौती भारत के सामने होगी।
