विषमता है एक घुन

Categorized as संपादकीय

जिस छोटे से तबके के हाथ में धन केंद्रित होता है, सरकारी नीतियों पर उसका शिकंजा कस जाता है। यानी गैर-बराबरी ऐसा घुन है, जो लोकतंत्र को कुतर डालती है। भारत में अमीर- गरीब की खाई तेजी से बढ़ी है।

भारत में आर्थिक गैर-बराबरी अत्यधिक बढ़ चुकी है, यह कोई नया तथ्य नहीं है। नई बात सिर्फ यह है कि इस बार जी-20 समूह की तरफ से नियुक्त मशहूर अर्थशास्त्रियों के टास्क फोर्स ने इस ओर ध्यान खींचा है। जोसेफ स्टिग्लिट की अध्यक्षता वाले इस टास्क फोर्स ने गैर-बराबरी बढ़ने के परिणामों का भी उल्लेख किया है। साथ ही बताया है कि इस पर किस तरह लगाम लगाया जा सकता है। फिलहाल, जी-20 की अध्यक्षता दक्षिण अफ्रीका के पास है। वहां के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा की पहल पर ये टास्क फोर्स बना। उसने बताया है कि इस समस्या को नजरअंदाज करना कितना हानिकारक है। टास्क फोर्स के मुताबिक अत्यधिक आर्थिक विषमता से राजनीति पटरी से उतर जाती है, जिससे लोकतंत्र कमजोर होता है।

इसके परिणामस्वरूप आर्थिक विकास एवं गरीबी उन्मूलन के प्रयास बाधित होते हैं। साथ ही जलवायु परिवर्तन रोकने की कोशिशें कमजोर पड़ती हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि जिस छोटे से तबके के हाथ में धन का संकेद्रण होता है, सरकारी नीतियों पर उसका शिकंजा कसता चला जाता है। यानी यह ऐसा घुन है, जो लोकतंत्र को कुतर डालता है। टास्क फोर्स के मुताबिक भारत में अमीर और गरीब के बीच संपत्ति की खाई पिछले दो दशकों में तेजी से बढ़ी। साल 2000 से 2023 के बीच देश के शीर्ष एक प्रतिशत लोगों के धन में 62 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।

दुनिया में सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों ने 2000 के बाद से पैदा हुई नई संपत्ति का 41 प्रतिशत हिस्सा अपने कब्जे में ले लिया। वहीं दुनिया की निचली 50 प्रतिशत आबादी की संपत्ति में सिर्फ एक प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इन आंकड़ों की रोशनी में इसे बेहतर ढंग से समझा जा सकता है कि इस दौर में भारत सहित ज्यादातर लोकतांत्रिक देशों में क्यों ऐसी ताकतों का उदय हुआ, जिनके राज में वहां लोकतांत्रिक आजादियां सिकुड़ी हैं। कारण है सत्ता के केंद्रों पर अत्यधिक धनवान लोगों का बना नया नियंत्र। बहरहाल, महज इस परिघटना को महज समझना पर्याप्त नहीं है। असल सवाल ऐसी राजनीति का है, जिसमें सत्ता आम जन के पास लौटाने की दृष्टि एवं संकल्प हो।


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