इसलिए बिहार ज़रूरी है नरेंद्र भाई के लिए

2026 में होने वाले पांच प्रदेशों के चुनाव नतीजों का 2027 में होने वाले छह राज्यों पर इसलिए चक्रवृद्धि ब्याज जैसा असर पड़ेगा कि तब फरवरी के मध्य से साल के अंत तक गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोआ में चुनाव होंगे। दिसंबर में गुजरात के चुनाव आने से पहले साल की पहली… Continue reading इसलिए बिहार ज़रूरी है नरेंद्र भाई के लिए

संपत्ति विरासत के विवाद आम है!

भारत में संपत्ति विरासत के मुख्यतः दो आधार होते हैं। वसीयतनामा (विल) और उत्तराधिकार कानून (सक्सेशन लॉ)। यदि किसी व्यक्ति ने वैध वसीयत बनाई है, तब संपत्ति उसी के अनुसार बांटी जाती है। अगर वसीयत में कोई गड़बड़ी या विवाद है, या अगर वसीयत ही नहीं है, तो 1925 का इंडियन सक्सेशन एक्ट लागू होता… Continue reading संपत्ति विरासत के विवाद आम है!

हिना: “उस से जब राम राम होती है !”

बीजेपी की यही सफलता ! पुलिस प्रशासन में भी धर्म जाति के आधार पर भेद कर दिया ! कर्नल सोफिया कुरैशी सेना की प्रवक्ता के तौर पर काम कर रहीं थीं। कुछ भी उनके खिलाफ नहीं था। तो कोई सामान्य भक्त या ट्रोल नहीं एक मंत्री उनके खिलाफ आया। सीधे पाकिस्तान से संबंध जोड़ने। नहीं… Continue reading हिना: “उस से जब राम राम होती है !”

ओवैसी की मोदी-मुहम्मद तुलना

ओवैसी ने अभी 6 अक्तूबर को बहादुरगंज की एक सभा में पूछा: “अगर हम ‘आई लव मुहम्मद’ का पोस्टर लेकर चलें तो उसमें अवैध क्या है?” इस का उत्तर‌ है कि तसलीमा का कथन “जब तक इस्लाम रहेगा, आतंकवाद रहेगा” का पोस्टर लेकर चलना भी उतना ही वैध है। यानी, मुहम्मद की आलोचना उतना ही… Continue reading ओवैसी की मोदी-मुहम्मद तुलना

वह गांव, जिसे समय ने भुला दिया

एक प्रधानमंत्री ने कभी दावा किया था कि उसने सौ मिलियन गरीबों के बैंक खाते खुलवाए हैं। मैंने उन खातों की पासबुकें देखीं। पहली एंट्री-जीरो। अगली—कुछ नहीं। दस साल बाद भी वे पासबुकें नीतियों के कब्रिस्तान की निशानियां हैं। एक घर में मुझे चौथी कक्षा का बच्चा मिला। वह एक अंकों का जोड़ कर लेता… Continue reading वह गांव, जिसे समय ने भुला दिया

कही दिल्ली पेयजल की प्यासी न हो जाए!

गौरतलब है कि अकबर की राजधानी फतेहपुर सीकरी पानी के अभाव के कारण मात्र 15 सालों में ही उजड़ गई थी।… दिल्ली का संकट केवल एक चेतावनी है। आने वाले वर्षों में संकट और बढ़ेगा।  विशेषज्ञों के मुताबिक़, यदि ठोस कदम नहीं उठाए गए तो 2030 तक देश के आधे बड़े शहर ‘जल-विहीन’ क्षेत्रों की… Continue reading कही दिल्ली पेयजल की प्यासी न हो जाए!

चिदंबरम के कहें का क्या है अर्थ?

दशकों तक स्वतंत्र भारत की विदेश नीति विदेशी विचारधारा से बंधी रही है। इसी वजह से भारत को बार-बार उन मुल्कों के आगे भी झुकना पड़ा, जो लंबे समय तक भारतीय हितों के खिलाफ खड़े थे। सालों तक भारत ने फिलिस्तीन और इस्लामी देशों का समर्थन किया, जबकि वह कश्मीर के मसले पर मजहब के… Continue reading चिदंबरम के कहें का क्या है अर्थ?

बिहारः ‘वोट खरीद’ की विद्रूपता के भरोसे एनडीए!

फिलहाल यही नजर आता है कि बिहार में 6 और 11 नवंबर को होने जा रहे मतदान एक सामान्य चुनाव का हिस्सा होंगे। इसमें कोई ऐसा नया तत्व नहीं है, जो मतदाताओं में नई आशाएं पैदा करे। प्रशांत किशोर नया तत्व जरूर हैं, मगर अरविंद केजरीवाल की यादें अभी इतनी ताजा हैं कि उनका नयापन… Continue reading बिहारः ‘वोट खरीद’ की विद्रूपता के भरोसे एनडीए!

समावेशी विकास का उत्तराखंड मॉडल

भारत में विकास के कई मॉडल की चर्चा होती है। सबकी अपनी खूबियां हैं और अपने अपने राज्य के हिसाब से उनका महत्व और उपयोगिता है। आमतौर पर विकास के मॉडल के तौर पर बड़े राज्यों की चर्चा की जाती है, जिनका सकल घरेलू उत्पाद बहुत बड़ा होता है या जहां औद्योगिकरण की संभावनाएं ज्यादा… Continue reading समावेशी विकास का उत्तराखंड मॉडल

‘कांतारा चैप्टर 1’: शिल्प और सिनेमाई साधना की गाथा

पिछले लगभग एक दशक से दक्षिण की फ़िल्मों ने भारतीय कहानी कहने की परंपरा को नए आयाम दिए हैं। आज के ‘सिने-सोहबत’ में हाल ही में आई फ़िल्म ‘कांतारा चैप्टर 1’ के माध्यम से उस तत्व की भी पड़ताल करते हैं। मेरे ख़्याल से वो बात है अपनी कहानी में ‘कन्विक्शन’ की। दक्षिण की फिल्मों… Continue reading ‘कांतारा चैप्टर 1’: शिल्प और सिनेमाई साधना की गाथा

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