बिहार के लोगों के लिए अगले पांच साल और उससे भी आगे का भविष्य चुनने का समय आ गया है। चार दिन बाद गुरुवार, छह नवंबर को पहले चरण की 121 विधानसभा सीटों पर वोटिंग होगी। उससे पहले मुख्य मुकाबले वाले दोनों गठबंधनों का घोषणापत्र सामने आ गया है। एक तरफ है एक व्यक्ति का ‘तेजस्वी प्रण’, जिसे गठबंधन की दूसरी पार्टियों का ही पूरा समर्थन नहीं मिल रहा है तो दूसरी ओर सामूहिक संकल्प है, जिसके पीछे देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और बिहार के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार की दूरदृष्टि और विशाल अनुभव का बल है। निश्चित रूप से बिहार के लोगों को यह तय करने में कोई परेशानी नहीं आने वाली है कि वे प्रण के नाम पर परोसे गए झूठ को चुनें या सचाई के संकल्प को चुनें।
एनडीए का संकल्प पत्र जारी होने के बाद माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘बिहार विधानसभा चुनाव के लिए जारी हुआ एनडीए का संकल्प पत्र आत्मनिर्भर और विकसित बिहार के हमारे विजन को स्पष्ट रूप से सामने लाता है। इसमें यहां के किसान भाई, बहनों, युवा साथियों और माताओं, बहनों के साथ ही राज्य के मेरे सभी परिवारजनों के जीवन को और आसान बनाने के लिए हमारी प्रतिबद्धता दिखाई देती है’। माननीय प्रधानमंत्री की यह प्रतिबद्धता ही इस संकल्प पत्र की शक्ति है, जिस पर बिहार के लोग भरोसा करेंगे।
बहरहाल, पहले अगर बिहार के विपक्षी महागठबंधन के घोषणापत्र की बात करें तो उसकी शुरुआत ही इस झूठ की बुनियाद से होती है कि सरकार बनने पर बिहार के हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देंगे। यह सिर्फ बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष श्री तेजस्वी यादव का वादा है। एक बार भी कांग्रेस के नेता श्री राहुल गांधी ने या गठबंधन की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी सीपीआई माले के श्री दीपांकर भट्टाचार्य ने इसे नहीं दोहराया है। उप मुख्यमंत्री पद के दावेदार घोषित हुए श्री मुकेश सहनी जरूर इस बात को दोहरा रहे हैं लेकिन पिछले दिनों उनका एक इंटरव्यू सोशल मीडिया में वायरल हुआ, जिसमें वे इस वादे से जुड़े किसी सवाल का जवाब नहीं दे पा रहे थे। वे नहीं बता पा रहे थे कि इतनी बड़ी संख्या में सरकारी नौकरी देने के लिए पैसा कहां से आएगा। वे हर सवाल के जवाब में कह रहे थे कि 20 महीने इंतजार करे। सवाल है कि क्या बिहार के लोग ऐसे आधारहीन वादे पर वोट करके 20 महीने इंतजार कर सकते हैं?
यह वादा पहली नजर में झूठ का पुलिंदा इसलिए दिखता है क्योंकि इसका कोई ठोस रोडमैप नहीं बताया गया है। इस पर इस वजह से भी संदेह है कि राष्ट्रीय जनता दल के 15 साल के शासन का इतिहास सबने देखा है। उस समय तो सारी सरकारी नौकरियां धीरे धीरे समाप्त हो गई थीं। कोई भी साधारण समझ का व्यक्ति इस वादे की वास्तविकता की पड़ताल करके इसे खारिज कर सकता है। बिहार में 2.78 करोड़ परिवार हैं। फिलहाल 23 लाख लोग सरकारी नौकरी कर रहे हैं। अगर यह माना जाए कि 23 लाख परिवार से एक एक व्यक्ति सरकारी नौकरी कर रहा है तब भी 2.53 करोड़ परिवारों को नौकरी देनी होगी। करीब ढाई करोड़ लोगों को नौकरी देकर अगर न्यूनतम वेतन यानी 20 हजार रुपए का महीना दिया जाए तब भी हर महीने 50 हजार करोड़ रुपए यानी छह लाख करोड़ रुपए सालाना की अतिरिक्त न्यूनतम जरुरत होगी। इसके अलावा दूसरे खर्च हैं, जबकि बिहार का बजट इस साल पहली बार तीन लाख करोड़ रुपए से ऊपर गया है।
दूसरा सवाल यह भी है कि बिहार की आबादी 13 करोड़ के करीब है और इनमें से अगर पौने तीन करोड़ लोगों को सरकारी नौकरी दे देंगे तो उनसे क्या काम कराएंगे? हर चार आदमी पर एक आदमी सरकारी नौकरी कर रहा होगा! ध्यान रहे पूरे देश में केंद्र और सभी राज्य सरकारों के कर्मचारियो की संख्या साढ़े चार करोड़ के करीब है और श्री तेजस्वी यादव बिहार में ही पौने तीन करोड़ सरकारी नौकरी देने की बात कर रहे हैं! उनके इस एक वादे ने उनके घोषणापत्र की सारी बातों को आधारहीन बना दिया। इसी कारण राष्ट्रीय जनता दल के सहयोगियों को भी इस पर भरोसा नहीं है और जब उनको भरोसा नहीं है तो बिहार की जनता कैसे भरोसा करेगी!
इसकी तुलना में अब एनडीए की घोषणापत्र की बात करें, जिसे संकल्प पत्र के रूप में प्रस्तुत किया गया तो दोनों में अंतर साफ साफ दिखाई देता है। एनडीए के संकल्प पत्र की शुरुआत एक करोड़ नौकरी और रोजगार देने के वादे से हुई है। पांच साल में सरकार एक करोड़ नौकरी और रोजगार देगी। यानी हर साल 20 लाख लोगों को सरकारी नौकरी और रोजगार देने का रोडमैप है। नीतीश कुमार की सरकार ने पिछले पांच साल में 10 लाख सरकारी नौकरी दी है और 50 लाख रोजगार मुहैया कराया है। इसलिए अगले पांच साल में एक करोड़ नौकरी और रोजगार का वादा सचाई के नजदीक दिखाई देता है और लोग इस पर भरोसा कर सकते हैं। ध्यान रहे बिहार में तैयार किए गए बुनियादी ढांचे की वजह से पहली बार बिहार में निजी निवेश का रास्ता खुला है। 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का निजी निवेश बिहार में आ रहा है और बिहार की जीडीपी में उद्योग सेक्टर की हिस्सेदारी 26 फीसदी से ज्यादा हो गई है। इसलिए अगले पांच साल में रोजगार के अवसर बनेंगे और सरकार नौकरियां देने में भी सक्षम होगी।
इसी तरह एनडीए के संकल्प पत्र में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार की महिलाओं को सशक्त बनाने की योजनाओं पर खास ध्यान दिया गया है। महिलाओं के लिए कई घोषणाएं की गई हैं और लगभग सारी घोषणाएं ऐसी हैं, जिनको पूरा किया जा सकता है। उदाहरण के लिए मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत महिलाओं को दो लाख रुपए तक की सहायता का वादा किया गया है। ध्यान रहे चुनाव से पहले ही सरकार ने महिला उद्यमी योजना के तहत महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए भेजे हैं। इसी योजना को आगे बढ़ाया जाएगा। इसी तरह एक करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी योजना के तहत लखपति बनाने का वादा किया गया है। ध्यान रहे केंद्र की श्री नरेंद्र मोदी सरकार की लखपति दीदी योजना के तहत करोड़ों महिलाओं को लखपति बनाया जा चुका है। इसलिए इस वादे पर भी बिहार की महिलाएं निश्चित रूप से भरोसा करेंगी। महिला उद्यमियों को करोड़पति बनाने का वादा भी किया गया है। महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नीतीश कुमार ने पहले कार्यकाल में पोशाक और साइकिल की योजना शुरू की थी। अब एनडीए ने वादा किया है कि हर जिले में महिला छात्रावास खोले जाएंगे।
बिहार की एक बड़ी समस्या हर साल आने वाली बाढ़ है। इस बार एनडीए के घोषणापत्र में बाढ़ की समस्या पर रोक लगाने का वादा किया गया है। साथ ही नदी जोड़ योजना के तहत कृषि योग्य सिंचित जमीन का एरिया बढ़ाने का वादा भी किया गया है। उद्योग के क्षेत्र में एक लाख करोड़ रुपए का निवेश करके कृषि आधारित उद्योगों और अन्य उद्योगों को बढ़ावा देने का वादा किया गया है। यह ध्यान रखने की बात है कि बिहार में बाढ़ की समस्या नेपाल से पानी छोड़े जाने की वजह से है। कोशी को बिहार का शोक कहते हैं और उसमें हर साल नेपाल के पानी की वजह से बाढ़ आती है। नेपाल के साथ वार्ता करके इस समस्या से बिहार को छुटकारा दिलाने का काम केंद्र सरकार के सहयोग के बगैर नहीं हो सकता है। बिहार की डबल इंजन सरकार को यह एडवांटेज है कि वह नेपाल से वार्ता करके वाढ़ की समस्या समाप्त करे और सिंचित क्षेत्र बढ़ा कर बिहार में कृषि व कृषि आधारित उद्योगों के लिए आदर्श स्थितियां बनाएं। कृषि के साथ मत्स्य पालन को बढ़ावा देने और इनके उत्पादों के निर्यात की सुविधा विकसित करने का वादा भी किया गया है।
एनडीए के संकल्प पत्र में 50 लाख पक्के मकान बना कर गरीबों, वंचितों को सौंपने का वादा किया गया है। यह वादा भरोसे के लायक इसलिए है क्योंकि प्रधानमंत्री शहरी व ग्रामीण आवास योजना के तहत करोड़ों लोगों को पक्का मकान मिल चुका है। इसी तरह पांच लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज उपलब्ध कराने का वादा किया गया है। यह भी आजमाया हुआ वादा है क्योंकि आयुष्मान भारत योजना के तहत लोगों को इसका लाभ मिल रहा है। बिहार की श्री नीतीश कुमार सरकार ने जुलाई के महीने से ही 125 यूनिट बिजली फ्री कर दी है, जिसे आगे भी जारी रखने का वादा किया गया है।
अगर शिक्षा के क्षेत्र में बात करें तो सबसे पहले सरकार एक लाख 60 हजार शिक्षकों की नियुक्ति करेगी। इस मामले में श्री नीतीश कुमार की सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत शानदार रहा है। उन्होंने पांच लाख के करीब शिक्षक नियुक्त किए हैं। शिक्षकों की नियुक्ति के साथ साथ एनडीए ने हर जिले में स्कूलों का कायाकल्प करने का वादा किया है। इसके अलावा नेतरहाट की तर्ज पर आवासीय विद्यालय खोलने और कृत्रिम बुद्धिमता यानी एआई के सेंटर बनाने का वादा भी किया गया है। युवाओं में कौशल विकास के केंद्र खोलने का वादा भी किया गया है।
केंद्र सरकार की योजना का विस्तार करते हुए बिहार में पहली नौकरी पर 15 लाख युवाओं को 15 हजार रुपए दिए जाएंगे। स्नातक और पीजी की पढ़ाई करने वाले युवाओं को नौकरी मिलने तक 24 हजार रुपए रुपए साल के मिलेंगे। इस बीच उनको नौकरी या रोजगार के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। नई सरकार ने हर जिले में मेडिकल क़ॉलेज खोलने का संकल्प जताया है। इसलिए चाहे रोजगार का मामला हो या शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग या महिला व युवा सशक्तिकरण का वादा हो, एनडीए का घोषणापत्र जमीनी वास्तविकताओं पर आधारित है। एनडीए की ओर से ऐसे वादे किए गए हैं, जिनसे डबल इंजन की सरकार की निरंतरता का आभास होता है। दूसरी ओर महागठबंधन का घोषणापत्र झूठ का पुलिंदा दिखाई दे रहा है, जिसका एकमात्र मकसद किसी तरह से सत्ता हासिल करके बिहार को फिर से जंगल राज और लूट राज की ओर ले जाना है। इसलिए बिहार के मतदाताओं को लिए चुनाव कोई मुश्किल नहीं होगा। वे छह अक्टूबर को शासन की निरंतरता चुनेंगे और संकल्प को सिद्ध करने के श्री नरेंद्र मोदी और श्री नीतीश कुमार की उपलब्धियों को ध्यान में रख कर मतदान करेंगे।
(लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तामंग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)
