भारतीय जनता पार्टी के नेता और सोशल मीडिया में उसके इकोसिस्टम के लोग इस बात पर मजे ले रहे हैं कि शऱद पवार और अजित पवार की पार्टी एक हो गई। वे खुश हो रहे हैं कि शरद पवार ने भी महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव के बहाने कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन को छोड़ दिया। वे इसी बहाने ‘इंडिया’ ब्लॉक के भविष्य पर सवाल उठा रहे हैं। लेकिन असलियत यह है कि शरद पवार और अजित पवार ने इसलिए हाथ मिलाया है ताकि अपने असर वाले इलाके में भाजपा को पैर जमाने से रोका जा सके है।
असल में पुणे का इलाका पवार परिवार का गढ़ रहा है। वहां वे किसी पार्टी को घुसने नहीं देते। इस बार लग रहा था कि अगर अजित पवार महायुति में रहते हैं तो उनको भाजपा और एकनाथ शिंदे को भी हिस्सा देना होगा। एक बार अगर भाजपा ने इस इलाके में पैर जमा लिया तो फिर उसे हटाना मुश्किल होगा। तभी अजित पवार ने ऐलान किया कि पुणे और पिंपरी चिंचवाड़ में वे भाजपा के साथ मिल कर स्थानीय निकाय का चुनाव नहीं लड़ेंगे। उधर सुप्रिया सुले पहले से अजित पवार के संपर्क में थी। सीटों को लेकर थोड़ी खींचतान हुई लेकिन फिर दोनों के बीच तालमेल हो गया। अब पुणे और पिंपरी चिंचवाड़ दोनों में दोनों एनसीपी एक साथ मिल कर लड़ेंगे। दोनों पार्टियों के नेता नारा लगा रहे हैं कि घड़ी और तुताड़ी एक हैं। तभी चिंता की बात कांग्रेस के लिए नहीं, बल्कि भाजपा के लिए है।
