चुनावों को पानीपत की लड़ाई बताने के बाद अब एक राज्य के चुनाव को सभ्यताओं का संघर्ष बताया जा रहा है। असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को सभ्यताओं का संघर्ष कहा है। चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जाकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने का प्रयास कर रहे सरमा ने दावा किया है कि 2011 में 34 फीसदी आबादी मुस्लिम थी, जो अगले साल की जनगणना में 40 फीसदी हो गई रहेगी। उनका दावा है कि इसमें ज्यादा हिस्सा बांग्लादेश से आए ‘मियां मुस्लिम’ का है। उनके खिलाफ बाकी लोगों को एकजुट होकर चुनाव लड़ना है और इसलिए यह सभ्यताओं का संघर्ष है।
सोचें, असम में पिछले 10 साल से भाजपा की ही सरकार है। पांच साल से तो खुद सरमा मुख्ममंत्री हैं और 11 साल से ज्यादा समय से केंद्र में भाजपा की सरकार है। फिर सीमा पार से कैसे घुसपैठ हो रही है और कैसे ‘मियां मुस्लिम’ आबादी इतनी ज्यादा बढ़ती जा रही है? इससे पहले वे मदरसे बंद कराने से लेकर बहुविवाह रोकने सहित कई उपाय आजमा चुके हैं। अब जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है और सरकार के कामकाज को लेकर विरोध का माहौल बन रहा है वैसे वैसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के नए नए मुद्दे उठाए जाने लगे हैं। गौरव गोगोई के नेतृत्व में कांग्रेस मजबूती से तैयारी कर रही है। इस बार कांग्रेस ने एआईयूडीएफ के बदरूद्दीन अजमल से गठबंधन नहीं करने का ऐलान किया है। सो, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराना थोड़ा मुश्किल हो रहा है। तभी सभ्यताओं के संघर्ष का मुद्दा उछाला जा रहा है।
