देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआऱ का काम हुआ है। भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में करीब दो करोड़ 90 लाख यानी 19 फीसदी लोगों के नाम कट गए हैं। बकौल योगी आदित्यनाथ इनमें से ज्यादातर भाजपा समर्थक हैं। उधर तमिलनाडु में 97 लाख यानी करीब 16 फीसदी नाम कटे हैं। इसके उलट पश्चिम बंगाल में 58 लाख यानी करीब आठ फीसदी नाम कटे हैं और 32 लाख अनमैप्ड हैं फिर भी सबसे ज्यादा हंगामा मचा हुआ है। पहला चरण पूरा हो जाने के बाद ऑब्जर्वर्स नियुक्त किए जाने को लेकर ममता बनर्जी की सरकार ने सवाल उठाया है। उनका कहना है कि सबसे कम नाम बंगाल में कटे हैं फिर भी राज्य सरकार से पूछे बगैर ऑब्जर्वर नियुक्त हो रहे हैं। इस बीच एक नया विवाद इस बात को लेकर खड़ा हो गया कि 32 लाख अनमैप्ड वोटर्स को जो नोटिस भेजा गया है उनके दावे और आपत्तियों पर सुनवाई शुरू हो गई है और पहले ही दिन पता चला है कि हजारों लोग ऐसे हैं, जिनके अपने नाम या माता, पिता में से किसी का नाम 2002 की कंप्यूटराइज मतदाता सूची में नहीं हैं लेकिन उस समय की हार्ड कॉपी में उनके नाम हैं। इसका पता चला तो दावे और आपत्तियों का काम रोक दिया गया और आयोग ने कहा कि लगता है सभी नामों को डिजिटाइज्ड नहीं किया गया था। सवाल है कि जब हार्ड कॉपी के सारे नाम कंप्यूटर पर नहीं चढ़े तो कैसे उनको अनमैप्ड बता कर नोटिस जारी कर दिया गया? क्या इस तरह आधी अधूरी तैयारी के साथ चुनाव आयोग काम कर रहा है? इस बीच एक और बीएलओ ने काम के दबाव में आत्महत्या कर ली है।
