वंदे मातरम् की बहस उलटी न पड़ जाए

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यह सही है कि वंदे मातरम् की रचना के डेढ़ सौ साल सात दिसंबर को पूरे हुए तो इस मौके पर अभी ही चर्चा होगी। यह तर्क सही है। लेकिन इस तर्क के आधार पर इस निष्कर्ष को नहीं खारिज किया जा सकता है कि इसका एक मकसद पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव भी है। पश्चिम बंगाल में अगले साल अप्रैल में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले भारतीय जनता पार्टी किसी इमोशनल मुद्दे की तलाश में है, जिससे पैन बंगाल हिंदू एकता बनाई जाए और साथ ही बांग्ला अस्मिता को भी एड्रेस किया जाए। वंदे मातरम् का मुद्दा और उसमें भी चार अंतरे हटाने का मुद्दा इन दोनों उद्देश्यों को पूरा कर सकता है। लेकिन वह तभी होगा, जब यह बात स्थापित हो कि कांग्रेस ने मुस्मिम तुष्टिकरण की वजह से वंदे मातरम् के चार अंतरे हटाए थे। इसके साथ ही यह बात भी स्थापित हो कि जवाहरलाल नेहरू ने ऐसा कराया था।

तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में इस पर फोकस रहा। उन्होंने कहा कि जिन्ना और मुस्लिम लीग के आगे कांग्रेस ने घुटने टेक दिए और उसने वंदे मातरम् को विभाजित कर दिया। उनको पता था कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस से नहीं लड़ना है इसलिए उन्होंने यह भी कहा कि जितनी पार्टियों के नाम में कांग्रेस लगा हुआ सबका रवैया ऐसा ही होता है। उनका इशारा तृणमूल कांग्रेस की ओर था। भाजपा के तमाम वक्ताओं ने चार अंतरे हटाने के लिए कांग्रेस और नेहरू को दोष दिया। लेकिन बात स्थापित नहीं हुई। प्रियंका गांधी वाड्रा और दूसरे वक्ताओं ने बताया कि इसकी पहल नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने की थी और अंत में नेताजी, गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर और जवाहर लाल नेहरी की कमेटी ने इसका फैसला किया। अब सवाल है कि नेताजी और गुरुदेव को कैसे भाजपा कठघरे में खड़ा कर सकती है?

इसी में एक दूसरी गड़बड़ी यह हो गई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंकिम चंद्र चटर्जी को बंकिम दा कहना शुरू कर दिया। इस पर तृणमूल के सांसद नाराज हुए और कहा कि बंकिम बाबू बोलिए। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने को तुरंत करेक्ट किया लेकिन डैमेज हो चुका था। तभी मोदी के भाषण के अगले दिन यानी मंगलवार, नौ दिसंबर को तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने संसद भवन के परिसर में मौन प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने हाथों में राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित पश्चिम बंगाल के सभी महापुरुषों की तस्वीरें ले रखी थीं. उसमें बंकिम बाबू की तस्वीर थी तो गुरुवेद रविंद्र नाथ टैगोर की भी थी और स्वामी विवेकानंद की भी थी। तृणमूल ने अपने महापुरुषों के अपमान का मुद्दा बना दिया है। तृणमूल के नेता यह बताना चाह रहे हैं कि भाजपा के नेताओं के मन में बंगाली महापुरुषों के लिए सम्मान नहीं है और वे उनके बारे में या बांग्ला संस्कृति के बारे में नहीं जानते हैं। इससे फिर ममता बनर्जी को बाहरी भीतरी का माहौल बनाने में मदद मिलेगी। भाजपा नेताओं को इसका ख्याल रखना होगा। नहीं तो उलटे उनको इसका नुकसान हो सकता है। ध्यान रहे कुछ दिन पहले ऐसे ही असम में एक व्यक्ति को ‘आमार सोनार बांग्ला’ गाने के लिए गिरफ्तार करके उसके ऊपर राष्ट्रद्रोह का मामला चलाया गया था। बंगाल में लोगों ने इसे सही नहीं माना। उनका कहना है कि भले यह गाना बांग्लादेश का राष्ट्र गान है लेकिन इसे गुरुदेव रविद्र नाथ टैगोर ने लिखा है। चुनाव से पहले ऐसी छोटी छोटी बातों का ध्यान रखना चाहिए।


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