महाराष्ट्र में विधानसभा का सत्र चल रहा है। सत्र शुरू होने से पहले उद्धव ठाकरे ने कहा कि एक साल से ज्यादा हो गए और अभी तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का फैसला नहीं हुआ। वे चाहते हैं कि उनकी पार्टी को मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा मिले और उसका नेता प्रतिपक्ष का नेता बने। लेकिन यह संभव नहीं है। 288 सदस्यों की विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए कम से कम 28 सीटें जीतना जरूरी है। उद्धव ठाकरे की शिव सेना को सिर्फ 20 सीटें मिली हैं। पिछले साल चुनाव नतीजों के बाद उद्धव ठाकरे ने दावा किया था कि महाविकास अघाड़ी यानी विपक्षी गठबंधन के 50 विधायक हैं।
उनका कहना था कि चूंकि महाविकास अघाड़ी एक गठबंधन के तौर पर चुनाव लड़ा था इसलिए उसके विधायक दल के नेता को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिया जाए। कायदे से यह बात सही प्रतीत होती है क्योंकि अगर किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिले लेकिन गठबंधन को बहुमत मिला हो तो गठबंधन के नेता को मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनाया जाता है। उसी तरह किसी पार्टी को 10 फीसदी सीटें नहीं मिली हैं लेकिन अगर चुनाव पूर्व गठबंधन को 10 फीसदी से ज्यादा सीटें हैं तो उसे प्रतिपक्ष का नेता पद मिलना चाहिए। लेकिन ऐसा लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी इस तरह की कोई उदारता दिखाने के मूड में नहीं है। भाजपा को पता है कि मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा देना और नेता प्रतिपक्ष बनाने के बाद क्या चुनौती आ सकती है। ध्यान रहे केंद्र में नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद ही राहुल गांधी ने यह मांग शुरू की है उनको विदेशी मेहमानों से मिलवाया जाए। इससे पहले दो लोकसभा में कांग्रेस को मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा नहीं मिला था तो ऐसी कोई मांग नहीं उठी थी।
