कांग्रेस पार्टी दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली की तैयारी कर रही है। काफी समय के बाद रामलीला मैदान में कांग्रेस रैली करेगी। रैली का मुख्य मुद्दा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर का है। लेकिन अब यह मुद्दा कहां है! चुनाव आयोग 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर करा रहा है। सभी पार्टियों के बूथ लेवल एजेंट्स इस काम में लगे हैं। कांग्रेस कई राज्यों में बूथ लेवल एजेंट्स यानी बीएलए अप्वाइंट करने में सबसे पीछे है। किसी राज्य में कांग्रेस ने जमीन पर उतर कर आंदोलन नहीं किया है। ममता बनर्जी जैसे पश्चिम बंगाल में लड़ रही हैं या उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव जिस तरह से एसआईआर की निगरानी कर रहे हैं और अपनी पार्टी के बीएलए के जरिए अपने लोगों को नाम कटने से बचाने या नाम जुड़वाने के लिए काम कर रहे हैं वैसा काम तो कांग्रेस पार्टी कहीं नहीं कर रही है।
बिहार में जब एसआईआर का काम चल रहा था तब राहुल गांधी ने 16 दिन की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ की थी। इस बार राहुल गांधी या कांग्रेस पार्टी किसी भी राज्य में जमीन पर नहीं उतरी। ऐसा लग रहा है कि बिहार के अनुभव से राहुल को सबक मिल गया है कि यह मुद्दा जनता के बीच बहुत अपील नहीं कर रहा है। यह बात यात्रा के दौरान ही राजद के नेता तेजस्वी यादव ने कही थी। उन्होंने कहा था कि यात्रा का इस्तेमाल महागठबंधन की एकजुटता दिखाने के लिए हो और यात्रा में जनता से जुड़े जमीनी मुद्दे उठाए जाएं। वे गरीबी, बेरोजगारी, पलायन, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे उठाने के पक्ष में थे। लेकिन राहुल गांधी एसआईआर और वोट चोरी पर अड़े रहे। अंत में राजद और कांग्रेस दोनों के नेताओं ने माना कि एसआईआर का मुद्दा चुनावी मुद्दा नहीं बन सका। एकाध छिटपुट मामलों को छोड़ दें तो कहीं से शिकायत नहीं आई कि बड़े पैमाने पर लोगों के नाम कट गए हैं। धर्म, जाति या क्षेत्र विशेष में अनुपात से ज्यादा नाम कटने के आरोप भी चल नहीं पाए क्योंकि ऐसी कोई शिकायत नहीं आई। ‘द हिंदू’ अखबार ने अपने डाटा प्वाइंट में बताया कि धर्म, जाति या क्षेत्र विशेष में अनुपात से ज्यादा वोट कहीं नहीं कटा है।
तभी ऐसा लग रहा है कि 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों मे चल रहा एसआईआर अभियान कोई बड़ा मुद्दा नहीं बन पा रहा है। फिर भी कांग्रेस पार्टी 14 दिसंबर को रामलीला मैदान में रैली कर रही है। इसे ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ महारैली कहा जा रहा है। संसद सत्र के बीच दिल्ली में इस रैली से कांग्रेस देश भर में मैसेज बनवाना चाहती है। हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के नेताओं के समर्थन से कांग्रेस की रैली में भीड़ इकट्ठा हो जाएगी। लेकिन क्या इसका मैसेज वहां तक पहुंचेगा, जहां अगले साल चुनाव होने वाले हैं? यह भी बड़ा सवाल है कि क्या ममता बनर्जी और एमके स्टालिन इसमें कांग्रेस का समर्थन करेंगे, आखिर उनके राज्य में चुनाव होने वाले हैं? ध्यान रहे प्रादेशिक क्षत्रप अपने स्थानीय मुद्दों और अपने संगठन के दम पर चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। उनके लिए स्थानीय मुद्दे पहले हैं औऱ बाद में वोट चोरी का भी एक मुद्दा आता है। लेकिन कांग्रेस बाकी सारे मुद्दे छोड़ कर वोट चोरी पकड़ के बैठी है। तभी इस पर उसको न तो जनता का समर्थन मिल रहा है और न सहयोगी पार्टियों का। बहरहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस के मंच पर सहयोगी पार्टियों के कौन कौन से नेता पहुंचते हैं!
