पंजाब के मामले में केंद्र सरकार की अतिरिक्त सावधानी दिख रही है। लेकिन यह समझ में नहीं आ रहा है कि कोई भी फैसला करने या कदम उठाने से पहले वह सावधानी क्यों नहीं बरती जा रही है? इससे यह संदेह भी हो रहा है कि पंजाब से जुड़े जिन मामलों में केंद्र सरकार कदम पीछे खींच रही है वह किसी सोची समझी योजना का हिस्सा तो नहीं है? ताजा मामला केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल के अमृतसर जाने और प्रदेश कमेटी की सलाह पर वहीं से लौट आने का है। मेघवाल गंग नहर से एक सौ साल पूरे होने के समारोह में हिस्सा लेने गए थे। गौरतलब है कि गंग नहर के जरिए पंजाब का पानी राजस्थान जाता है।
पंजाब में पानी को लेकर किसान बहुत संवेदनशील हैं। तभी प्रदेश भाजपा कमेटी ने मेघवाल को भी और पार्टी को भी कहा कि उनको इस कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए क्योंकि किसान नाराज होंगे। उसके बाद मेघवाल का कार्यक्रम स्थगित हुआ और वे अमृतसर से वापस लौटे। इससे पहले केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ को संविधान के अनुच्छेद 240 के दायरे में लाकर वहां केंद्र की नौकरशाही पर केंद्रीय सेवा शर्तें और नियम लागू करने का बिल लाने का फैसला किया था। बिल चालू सत्र में पेश किया जाना था। लेकिन प्रस्तावित विधेयकों की खबर बाहर आने के बाद सरकार पीछे हट गई और कहा कि बिल पेश करना का उसका कोई इरादा नहीं था। इसी तरह पंजाब यूनिवर्सिटी में सीनेट भंग करने के फैसले पर भी सरकार पीछे हटी। इससे ऐसा लग रहा है कि सरकार या तो फैसला कर ले रही है और उसे लागू करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है या फैसला करके उसे प्रचारित करके यह अंदाजा लगाना चाह रही है कि इस पर कैसी प्रतिक्रिया होती है।
