चुनाव से पहले बिहार में एनडीए की सहयोगी पार्टियों के बीच जो अविश्वास था वह इतने बड़े जनादेश के बाद भी खत्म नहीं हो रहा है। चुनाव से पहले कहा जा रहा था कि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को भाजपा और जदयू दोनों ने मिल कर सबसे मुश्किल सीटें दी हैं। उनको 29 में से 20 सीटें ऐसी दी गई थीं, जिन पर पिछली बार राजद की जीत हुई थी औऱ वह बहुत मजबूत थी। उपेंद्र कुशवाहा को भी मुश्किल सीटें दिए जाने की चर्चा थी। चुनाव के नतीजे आने के बाद नए सिरे से अविश्वास फैला है। कम अंतर से हार जीत वाली सीटों को लेकर सबसे ज्यादा विवाद हुआ है। यह हैरानी की बात है कि भारतीय जनता पार्टी के समर्थक और उनका इकोसिस्टम सोशल मीडिया में प्रचार कर रहा है कि भाजपा के छह उम्मीदवार कम अंतर से हारे हैं और इसके पीछे कोई साजिश है। कहा जा रहा है कि वोटों की गिनती के दौरान जनता दल यू ने प्रशासन की मदद से यह भरपूर प्रयास किया कि वह सबसे बड़ी पार्टी बने।
यहां तक कहा जा रहा है कि रामगढ़ सीट पर बहुजन समाज पार्टी के पिंटू यादव सिर्फ 30 वोट से जीते। उन्होंने भाजपा के अशोक सिंह को हराया। नतीजों के बाद जदयू के नेताओं ने पिंटू यादव से संपर्क किया और पार्टी में शामिल होकर मंत्री बनने का प्रस्ताव दिलाया। भाजपा के नेती दबी जुबान में कह रहे हैं कि डिजाइन के तहत रामगढ़ में भाजपा को हरवाया गया। इसी तरह राजद से ज्यादा भाजपा के इकोसिस्टम के जरिए यह बात फैलाई जा रही है कि जनता दल यू के राधाचरण साह संदेश सीट पर सिर्फ 27 वोट से कैसे जीते? वहां साढ़े तीन सौ पोस्टल बैलेट रद्द किया गया था। इसी तरह जनता दल यू के उम्मीदवार चेतन आनंद नबीनगर से 112 वोट से जीते। इन उदाहऱणों के आधार पर कहा जा रहा है कि प्रशासन की मदद से जनता दल यू ने नजदीकी मुकाबले वाली सीटों पर अपने उम्मीदवारों को जिताया, जबकि ऐसी ही सीटों पर भाजपा को हरवा दिया।
