प्रचार के समय नीतीश चंगे!

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नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बने हैं। जबकि तीन महीने पहले लग रहा था कि वे प्रचार नहीं कर पाएंगे क्योंकि उनकी सेहत ठीक नहीं लग रही थी। असल में उनकी सेहत को लेकर पिछले दो साल से तरह तरह की खबरें आई है। उन खबरों को प्रमाणित करने वाले वीडियो भी आए। नीतीश कुमार लोगों को पहचान नहीं पाते थे या नाम भूल जाते थे या अजीबोगरीब व्यवहार करते थे। उनके ऐसे ही व्यवहार के कारण हर सोमवार को लगने वाला उनका जनता दरबार बंद कर दिया गया। एक दिन जनता दरबार में वे बार बार गृह मंत्री को फोन लगाने के लिए कह रहे थे, जबकि वे खुद ही गृह मंत्री थे। ऐसी अनेक घटनाएं हुईं, जिनके बाद नीतीश कुमार के राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठने लगे थे। लेकिन जैसे ही चुनाव नजदीक आया वैसे ही नीतीश कुमार की तबियत पूरी तरह से ठीक हो गई। वे फैसले करने लगे और सड़क के रास्ते सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा करके प्रचार करने लगे।

उनकी खराब सेहत के कारण बहुत से लोगों को बड़ी उम्मीदें बन गई थीं। प्रशांत किशोर बार बार कह रहे थे कि नीतीश को अपने मंत्रियों के नाम याद नहीं रहते। वे नीतीश कुमार का राजनीतिक स्पेस हासिल करना चाहते थे। इसी तरह तेजस्वी यादव को लग रहा था कि वे अब ओबीसी राजनीति के एकमात्र वारिस हैं। भाजपा को लग रहा था कि नीतीश कुमार की पार्टी और उनकी राजनीतिक विरासत दोनों कब्जाई जा सकती है। नीतीश की अपनी पार्टी के नेताओं को लग रहा था कि वे पार्टी से ऊपर अपना निजी हित साध सकते हैं। लेकिन नीतीश ने सबकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

उन्होंने सबसे पहले सीट बंटवारे के बाद तेवर दिखाया। मीडिया में सही या गलत जो सूची चल रही थी उसे खारिज कराया। असल में खबर आई थी कि उनकी खराब सेहत का फायदा उठा कर भाजपा और लोजपा को जदयू की कई जीती हुई सीटें दे दी गई थीं। नीतीश ने सारी सीटें वापस हासिल की। इसी तरह चक्रवाती तूफान मोंथा के असर से बिहार में तीन दिन लगातार बारिश हुई तो तेजस्वी यादव सहित तमाम बड़े नेता पटना में बैठे रहे क्योंकि हेलीकॉप्टर नहीं उड़ सका था लेकिन इस दौरान नीतीश कुमार ने सड़क के रास्ते सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा करके उन्होंने जनसभाएं कीं। इससे पूरा चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर आ गया। उनके प्रति सहानुभूति अलग से हुई, जिसका लाभ भी उनकी पार्टी और गठबंधन दोनों को मिला। जितने लोगों ने उनका मजाक उड़ाया या आलोचना की सब साफ हो गए। पता नहीं कैसे उनकी भूलने की बीमारी चुनाव प्रचार के दौरान पूरी तरह से ठीक रही। सरकार गठन के बाद वे फिर एक बार प्रधानमंत्री मोदी के पांव छूने के लिए झुके लेकिन प्रचार के दौरान वे ठीक रहे।


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