खबर छोटी है। हवा को सांस लायक बनाने के प्यूरीफायर पर सरकार 18 फीसदी जीएसटी वसूलती है! इसी पर सरकार ने अदालत को यह कहते हुए हैसियत बताई कि हम ऐसे टैक्स हटाना, कम करना नहीं करेंगे। सो, भारत के नागरिकों को यदि हवा, सांस शुद्ध (अपने जतन से) लेनी है तो पहले मोदी राज को भारी टैक्स दो। अंग्रेजों के समय नमक के दारोगा का एक जुमला था। अब तो मोदी सरकार हवा, पानी, नमक, आटे, खाने के सामान, सडक, बिजली सभी की दरोगा हैं। उसे भारत की भेड़-बकरियों का अनिवार्यतः खून चूसना है। यदि सरकार ने देश की राजधानी दिल्ली (तमाम महानगर) को विकसित नरक बनाया है तो नरक में भी जनता का जीना टैक्स दे कर है, सांस के जुगाड़ में जेब खाली करनी है।
बात न छोटी है न मामूली। इसलिए कि जैसे हवा का मामला है वैसे पानी का भी मामला है। पानी के प्यूरीफायर (आरओ) के लिए भी टैक्स वसूला जाता है। स्वतंत्र भारत की मोदी सरकार और अंग्रेज मालिक का फर्क इस सत्य से जाहिर होता है जो ब्रिटेन में नल का पानी घर-रसोई का आधार है। वह साफ पेयजल है। लगभग फ्री। वही भारत में घर-रसोई में आरओ से पानी को शुद्ध कर पानी का उपयोग होता है। वही सरकारी जल सप्लाई लूट का प्रबंध है। राजधानी के जल बोर्ड के सर्दियों में भी तीन-चार-पांच हजार रुपए के बिल आते हैं। इसलिए क्योंकि स्वतंत्र भारत के हाकिमों, नौकरशाहों तथा व्यवस्था-तंत्र का शासन अब उस अवस्था में है जो 140 करोड़ लोगों की आर्थिकी को जिंदा बताने का सूत्र जीएसटी वसूली के आंकड़े से प्रचारित करती है। हर महीने मोदी सरकार भेड़-बकरियों से टैक्स वसूली के रिकॉर्ड आंकड़े जारी करके अपनी पीठ थपथपाती है और भेड़-बकरियों का मीडिया नैरेटिव हिनहिनाता हुआ प्रधानमंत्री का अभिनंदन करता है।
अंग्रेज राज में लूटने का प्रतिमान नमक पर टैक्स था। अब हवा-पानी पर टैक्स है जबकि नमक एक वस्तु, कमोडिटी है। जिस पर अंग्रेज सरकार का दो-तीन पैसे प्रति मन टैक्स था तो स्वतंत्रता सेनानियों का हल्ला हुआ कि देखो हिंदुस्तानियों को अंग्रेज कैसे लूट रहे हैं। गांधी ने दांडी मार्च किया। आज 2025 में क्या है? देश की राजधानी विकसित नरक के अमृतकाल में सांस ले रही है। हवा जहरीली है। ऐसे में देश का नागरिक या परिवार शुद्ध हवा के जुगाड़ में मशीन खरीदे तो ऐसा करना मोदी सरकार की निगाहों में ‘लक्जरी’ है। तभी 18 प्रतिशत टैक्स वसूली है!
सोचें, सरकार ने हवा को जहरीला बनाया या बनने दिया। और नागरिक अपने बूते हवा को साफ करने का उपाय सोचे तो उसे पहले सरकार को ‘लक्जरी’ टैक्स देना होगा! मतलब भारत के नागरिक का साफ हवा या पानी चाहना, सोचना भी ‘लक्जरी’ है! विलासिता है। सो, टैक्स देना ही होगा। इसे आप लोक सेवा कहेंगे या लोक लूट?
दरअसल नरक काल में लूटना राजधर्म है। अंग्रेज या मुगल राज में लूट का ऐसा नरक काल नहीं था। पिछले ग्यारह वर्षों में, खासकर जीएसटी के लागू होने के बाद भारत का लूट तंत्र पूरी तरह स्वच्छंद है। न संसद में बहस होती है न जन प्रतिधिनियों, निर्वाचित सरकारों के मंत्रियों में विचार विमर्श, जन सुनवाई या परामर्श होता है। एक ही सूत्र है। सत्ता की भूख और फिजलूखर्चियों, खोखली आर्थिकी में कैसे अपने आपको सत्ता विकासमान बतलाएं। इसके लिए तंत्र याकि अफसरों का काम अंग्रेजों की लूट परंपरा में नमक, हवा, पानी, सड़क, बिजली, आटा-दाल, पैकेज्ड खाने आदि सबको टैक्स लायक या ‘लक्जरी’ करार दे कर वसूली का रिकॉर्ड बनाना है। मोदी सरकार ने हर बुनियादी चीज पर जीएसटी से प्रत्यक्ष-परोक्ष टैक्स से ऐसी वसूली बनाई है कि नमक पर टैक्स लगाने वाला अंग्रेज लुटेरा वॉरेन हेस्टिंग्स यदि आज जिंदा होता तो वह सोच शर्मसार होता कि प्रधानमंत्री मोदी के आगे तो वह मात्र चूजा है।
घर-परिवारों के आरओ वाटर प्यूरीफायर पर 18 प्रतिशत जीएसटी है तो हवा के प्यूरीफायर या बोतलंबद पानी पर भी है। अंग्रेज सरकार दिल्ली में नल से पानी पहुंचाती थी तो वह साफ होता था और लगभग फ्री। आज की दिल्ली के नरक निर्माण में पानी न केवल गंदा है (हाल में पानी में यूरेनियम तत्व की खबर थी) बल्कि उसकी कमी का हाहाकार भी है। घरों में जलबोर्ड-टैंकरों का पानी पांच-दस हजार रुपए महीने का खर्च बनवाता है। न कोई जवाबदेही है और न कोई विरोध-हल्ला। शायद इसलिए कि विकसित नरक तो पापी लोगों का वास है। भारत के लोगों ने, दिल्ली के लोगों ने मोदी सरकार को चुनने का जो पाप किया है तो नरक तो भोगना होगा, नरक के कायदे में तो रहना होगा। कोई शिकायत न करे, कोई सोचे नहीं। न अधिकार, न सुनवाई और न जवाबदेही। सांस के मारे चंद बूढे लोग इंडिया गेट पर साफ हवा की मांग में इकठ्ठे हो तो उन्हे भेड-बकरियों की तरह उठा कर बंद कर दो।
दिल्ली के नरक में मनुष्यगत मांग निषेध है। विरोध वर्जित है तो न कुछ स्वच्छ, फ्री है। कोई भी लोक सेवा नहीं है। कोई जवाबदेही नहीं है। पता है आपको दिल्ली से जयपुर की ढाई सौ किलोमीटर की दूरी के एक्सप्रेस वे का कितना टोलटैक्स है? एक हजार रुपए से भी ज्यादा। जबकि मोदी राज के कथित अमृतकाल का चौबीसों घंटे का नैरेटिव इंफ्रास्ट्रक्चर में कायाकल्प है। मगर यह लोक सेवा का नहीं बल्कि लोक लूट का कायाकल्प है। सड़क का टोलटैक्स हो या हवाई यात्रा में प्रति टिकट का एयरपोर्ट, ईंधन टैक्स या बंदरगाहों के टैक्स सब 11 वर्षों में सुरसा की तरह बढ़े हैं। नतीजतन 140 करोड़ आबादी में एक प्रतिशत आबादी को छोड़ कर बाकी सभी उसकी कीमत वैसे ही चुकाते हुए है जैसे एक्सप्रेस वे के किनारे रेस्टोरेंट में खानपान की चीजों पर मनमानी टैक्स वसूली है।
मैं सचमुच उस अनुभव पर भन्ना गया जब एक्सप्रेस वे के किनारे के एक ढाबे में दो रोटी, एक सब्जी, एक दाल और सादे चावल की प्लेट, पानी बोतल का 12 सौ रुपए का बिल मिला। पर ढाबा क्या करे? उसे सरकारी एजेंसी से लीज, चाईनीज इंटिरियर की तडक-भड़क में ढाबे को आधुनिक शक्ल देने, पांच या 18 प्रतिशत टैक्स की वसूली को यात्रियों से वसूलना ही है। सभी उस दुष्चक्र के मारे है, जिसमें 11 वर्षों से आर्थिकी फंसी है। मेरा मानना है कि मोदी सरकार का पिछले 11 वर्षों का सबसे बड़ा पाप पूरी आर्थिकी को महंगा व लुटेरा बनाना है। दुनिया में किसी भी देश ने कीमतों की वैश्विक गिरावट के बावजूद पेट्रोल- डीजल-ईंधन की कीमतें लगातार ऊंची नहीं बनाए रखी। पर वैश्विक दाम गिरे, लागत पच्चीस-तीस रुपए हुई तब भी भारत में पेट्रोल-डीजल-ईंधन औसतन सौ रुपए प्रति लीटर बेचा गया। ऐसे ही बिजली के दामों पर टैक्स और मुनाफे की भूख।
नतीजा क्या हुआ? जवाब में यह तथ्य नोट करें कि आधुनिक युग में ईंधन-उर्जा आर्थिकी की नसों का खून है। यदि वह महंगा तो महंगाई का सर्वव्यापकी दुष्चक्र। तभी नोट करें कि भारत का नरक अब कभी भी किसी तरह की आत्मनिर्भरता, औद्योगिक क्रांति, एआई क्रांति याकि वैश्विक तौर पर प्रतिस्पर्धी नहीं हो सकेगा। हर काम में ईंधन, ऊर्जा चाहिए और भारत में सरकार ईंधन से टैक्स लूट रही है तो क्रोनी पूंजीवादी भी उसी से, उसी के हवाले लूट रहे हैं। जब ईंधन- उर्जा मंहगी और टैक्स भारी तो कुछ भी सस्ता नहीं हो सकता।
ठीक विपरीत चीन ने 11 वर्षों में क्या किया? चीन ने इन 11 वर्षों में सोलर ऊर्जा पैदा करने का रिकॉर्ड बनाया। ताजा रिपोर्ट के अनुसार चीन की सोलर ऊर्जा क्षमता अब 689 गीगावाट्स की है। और इनसे वह 14 सौ टेरावाट बिजली प्रति घंटा पैदा कर सकता है। सोलर एनर्जी और ईवी बैटरी और फिर पवन टर्बाइन की ऊर्जा से उसका वह भंडार बना है, जिससे सस्ती बिजली सप्लाई है। लोगों का जीवन सस्ता हुआ। बीजिंग का प्रदूषण खत्म हुआ। और पूरी आर्थिकी में ईंधन की घटती लागत से फैक्टरियों में इतना सस्ता सामान लगातार बनता हुआ है कि भारत में उतनी कम उत्पादन लागत की कल्पना ही संभव नहीं है। यह वैसा ही सत्य है जैसे एक कार में महीने में दस हजार रुपए का पेट्रोल भरवाना और ईवी कार लें तो हजार-बारह सौ रुपए की बिजली का बिल (बिजली महंगी होने के बावजूद)।
चीन का राष्ट्रपति शी जिनपिंग मंदिर नहीं बनवाता। अतीत की कहानियों, जुमलों से जिंदा नहीं है। वह और चीन सभ्यता के बुद्धीवान वैश्विक रियलिटी, अर्थशास्त्र, विज्ञान, तकनीक और भविष्य के सिनेरियो में दिन रात सोचते-बहस कर नीतियां बनाते होते हैं। जबकि भारत के मौजूदा समय में क्या है? भारत में वह विकसित नरक निर्माण है, जिसमें वित्तीय प्राथमिकता नागरिकों की बेसिक आवश्यकताओं पर आंख मूंद कर टैक्स लगाना है। सोचना ही नहीं कि हवा, पानी, खानपान, सड़क, बिजली को सुलभ-सस्ता-शुद्ध नहीं रखा गया तो न मानव शक्ति के फेफड़े दौड़ेंगे और न मनुष्य शरीर काम करेगा। क्या तो देश में उत्पादकता होगी और ऐसी नस्ल कैसे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिकेगी।
