भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक भारतीय निवेशकों के विदेशी शेयर बाजारों में किए निवेश में इस वर्ष 54.50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। अक्टूबर तक भारतीय निवेशकों ने 1.959 बिलियन डॉलर का निवेश विदेशी शेयर बाजारों में किया।
जमीन पर गहराती आर्थिक मुश्किलों के बीच भी गुजरे वर्षों में चमकते रहे भारतीय शेयर बाजार पर 2025 में संकट का साया पहुंचता नजर आया है। ताजा आकलन के मुताबिक इस वर्ष कारोबार के लिहाज से सक्रिय 3,677 शेयरों में लगभग 75 प्रतिशत नकारात्मक दायरे में पहुंच गए- यानी उनका भाव गिरा। 2024 में ऐसे शेयरों की संख्या महज 33 फीसदी थी। अर्थ यह कि अभी भी शेयर सूचकांक अगर ऊंचे नजर आते हैं, तो उसके पीछे महज 25 फीसदी शेयरों का कारोबार है। मगर यह स्वस्थ स्थिति नहीं है। ऐसा क्यों हुआ, इसे समझने के सूत्र भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों से मिलते हैं। इनके मुताबिक भारतीय निवेशकों द्वारा विदेशी शेयर बाजारों में किए गए निवेश में इस वर्ष 54.50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
इस वर्ष जनवरी से अक्टूबर तक भारतीय निवेशकों ने 1.959 बिलियन डॉलर (17,000 करोड़ रुपये) का निवेश विदेशी शेयर बाजारों में किया, जबकि पिछले साल इसी अवधि में ये रकम 1.268 डॉलर थी। साल के उत्तरार्द्ध में ऐसे निवेश की गति और तेज हो गई। दूसरी तरफ विदेशी निवेशकों ने तेज रफ्तार से भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकाला। वे अब तक भारत से 86,960 करोड़ रुपये (9.66 बिलियन डॉलर) बाहर ले जा चुके हैं। इन दोनों परिघटनाओं का परिणाम डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत गिरने के रूप में आया है। इस वित्त वर्ष में अब तक रुपये की कीमत लगभग छह प्रतिशत गिर चुकी है।
भारतीय शेयर बाजार में मिला औसत रिटर्न भी लगभग इसी के आसपास है। मतलब यह कि विदेशी निवेशकों के लिए भारत में मुनाफा लगभग शून्य हो गया है। ऐसे में आशंका है कि भारत से उनके पैसा निकालने का क्रम अगले साल भी जारी रहेगा। इससे भारत में अनिश्चय बढ़ा है। नतीजतन, भारत के बड़े निवेशक अमेरिका में एआई बबल के फूटने की आशंका के बावजूद वहां पैसा लगाना ज्यादा लाभकारी मान रहे हैं। मतलब यह कि भारतीय शेयर बाजार छोटे निवेशकों पर अधिक निर्भर होते जा रहे हैं। लेकिन अगर 75 फीसदी शेयर नकारात्मक दायरे में हैं, तो आखिर ये निवेशक भी कब तक बाजार को संभाल पाएंगे?
