सैलानियों ने मुंह मोड़ा?

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भारतीय पर्यटन स्थल सैलानियों को क्यों आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं? कारोबार से जुड़े लोगों के मुताबिक भारत में पर्यटन अधिक महंगा है, यहां का बुनियादी ढांचा कमजोर है, और सुरक्षा संबंधी चिंताएं हमेशा संगीन बनी रहती हैं।

एक और साल भारत में पर्यटन कारोबार के लिए निराशाजनक साबित हो रहा है। अब तक के ट्रेंड के मुताबिक इस वर्ष भारत आए विदेशी सैलानियों की संख्या में 12 प्रतिशत की गिरावट आने जा रही है। कोरोना महामारी के पहले- यानी 2019 में जितने विदेशी पर्यटक भारत आए, कोरोना काल के बाद वह संख्या फिर कभी हासिल नहीं हुई। जबकि दुनिया में यह कारोबार अपनी चमक वापस पा चुका है। मसलन, इस साल वियतनाम (21 फीसदी), श्रीलंका (16), मलेशिया (15), इंडोनेशिया (9) आदि देशों में विदेशी सैलानियों की संख्या काफी बढ़ी है। हकीकत तो यह है कि धनी भारतीय पर्यटक भी अब विदेश जाने में अधिक दिलचस्पी ले रहे हैं।

आंकड़ों के मुताबिक क्रिसमस- नव वर्ष सीजन पिछले साल 24 लाख से अधिक भारतीय पर्यटन के लिए विदेश गए, जबकि इस बार ये संख्या 25 लाख पार करने जा रही है। तो सवाल है कि भारतीय पर्यटन स्थल सैलानियों को क्यों आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं? कारोबार से जुड़े लोगों ने कहा है कि भारत में पर्यटन अधिक महंगा है, यहां का बुनियादी ढांचा कमजोर है, और सुरक्षा संबंधी चिंताएं संगीन बनी रहती हैं। इस वर्ष पर्यटकों की संख्या में बड़ी गिरावट इसलिए भी आई, क्योंकि बांग्लादेश से बिगड़े रिश्तों के कारण वहां से सैलानी कम आए और पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद बने युद्ध के माहौल के बीच बहुत-से पर्यटकों ने अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया।

अनुमान लगाया जा सकता है कि साल के आखिर में इंडिगो एयरलाइन्स के संकट ने इसमें और योगदान किया होगा। आंकड़ों के मुताबिक विदेशों में भारत को विज्ञापन करने में पर्यटन मंत्रालय का रुख लचर हो गया है। पिछले दशक के किसी वर्ष में वह बजट में मिली पूरी रकम को खर्च नहीं कर पाया। इन सबका परिणाम इस कारोबार से जुड़े लोग भुगत रहे हैं। पर्यटन ऐसा कारोबार है, जिससे बिना जोखिम उठाए विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है और लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। मगर इस उद्योग का सीधा संबंध देश के कुल हालात से होता है। यानी यह कारोबार लड़खड़ा रहा है, तो यह भारत की कुल स्थिति पर एक प्रतिकूल टिप्पणी है।


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