यही तो अंदेशा था

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जीएसटी कटौती से एफएमसीजी कंपनियों की बिक्री में अक्टूबर में हुई बढ़ोतरी नवंबर में गायब हो गई। बाजार का दीर्घकालिक रुझान भी जारी रहा है। एसयूवी की बिक्री खूब बढ़ी है, मगर छोटी कारों के मामले में मामूली बढ़ोतरी ही दर्ज हुई।

धूम-धड़ाके से “बचत उत्सव” मनाने के बाद अब बारी उसकी कीमत चुकाने की है। प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस को लाल किले से जीएसटी ढांचे में बदलाव का एलान किया था। नवरात्रि के साथ नई दरें लागू हुईं, तो यह धारणा बनाने की कोशिश हुई कि भारतीय बाजार में मांग एवं उपभोग की कमी से उपजी तमाम आर्थिक समस्याओं का अब हल निकल आएगा। यह समाधान कितना हुआ, यह अपने-आप में महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। मगर एक सवाल राजकोष पर इसके असर का भी है, जिसकी ओर तब अनेक हलकों से ध्यान दिलाया गया था। अब मुद्दा सामने है।

महाराष्ट्र के वित्त मंत्री अजित पवार ने कहा है कि “कल्याण योजनाओं” पर अधिक खर्च के कारण पहले से ही राजकोषीय दबाव में चल रही राज्य सरकार को जीएसटी दरों में कटौती से सालाना 15 हजार करोड़ रुपये का नुकसान होने जा रहा है। इसकी क्षतिपूर्ति के लिए राज्य सरकार उत्पाद शुल्कों में बदलाव पर विचार कर रही है। यानी जीएसटी में मिली राहत को उत्पाद शुल्क में वृद्धि से वापस लिया जाएगा। या फिर पहले से ही 9.32 लाख करोड़ रुपये के कर्ज बोझ तले दबी राज्य सरकार नए ऋण लेगी। कर्ज का गणित यह है कि उसका ब्याज चुकाना होता है और वह भी करदाताओं की जेब से ही आता है। कर्जदाता मोटी जेब वाली कंपनियां और लोग होते हैं, जबकि ज्यादा बोझ फटी जेब वालों पर पड़ता है।

अब अगर जीएसटी कटौती से हुए फायदों पर ध्यान दें, तो कुछ ताजा आंकड़े इसकी कहानी बता देते हैं। रोजमर्रा की जरूरत के सामान बनाने वाली (एफएमसीजी) कंपनियों की बिक्री दर में अक्टूबर में हुई बढ़ोतरी नवंबर में गायब हो गई। और अक्टूबर की कथा भी यह थी कि बिक्री में बढ़ोतरी बाजार के दीर्घकालिक रुझान के अनुरूप ही रही। मसलन, अक्टूबर- नवंबर के साझा आंकड़ों के मुताबिक कार बाजार में एसयूवी की बिक्री 17 फीसदी बढ़ी, लेकिन छोटी कारों के मामले में यह तीन प्रतिशत ही रही। यानी बाजार के विस्तार की उम्मीदें पूरी नहीं हुई हैं। लाभ धनी लोगों तक सीमित रहा, जबकि अब कीमत चुकाने का ज्यादा बोझ आम लोग उठाएंगे!


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