ट्रंप प्रशासन की नई सुरक्षा रणनीति में चीन का मुकाबला करने लिए अमेरिका को तैयार करने पर खासा जोर दिया गया है। मगर ऐसा लगता है कि इस मकसद को हासिल करने में अमेरिका अब भारत को ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं मानता।
चर्चा तो काफी समय से थी, लेकिन अब इसकी औपचारिक घोषणा हो गई है। डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन ने अपनी नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति जारी की है, जिसमें पहली प्राथमिकता पश्चिमी गोलार्द्ध में अमेरिकी प्रभाव को सुरक्षित करने को दी गई है। हालांकि चीन का आर्थिक एवं रणनीतिक रूप से मुकाबला करना अभी अमेरिका की प्रमुख नीति रहेगी, मगर पश्चिमी गोलार्द्ध यानी लैटिन अमेरिका और कैरीबियन द्वीप- समूह में अमेरिकी वर्चस्व को पुनर्स्थापित करना ट्रंप प्रशासन की पहली प्राथमिकता होगी। जाहिर है, इस लक्ष्य के अनुरूप अमेरिका ने अपनी फौरी और दीर्घकालिक रणनीतियों में बदलाव का इरादा जताया है। इससे सबसे बुरी तरह प्रभावित यूरोप और भारत होंगे।
ट्रंप के पहले कार्यकाल में 2017 में जारी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में भारत को अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति में प्रमुख स्थान दिया गया था। कहा गया था: “हम भारत के एक अग्रणी वैश्विक शक्ति और मज़बूत रणनीतिक एवं रक्षा साझेदार के रूप में उभरने का स्वागत करते हैं।” इसके विपरीत ताजा दस्तावेज में केवल यह कहा गया है कि अमेरिका को भारत के साथ वाणिज्यिक (एवं अन्य) संबंधों में सुधार जारी रखना चाहिए, ताकि वह इंडो-पैसिफिक सुरक्षा में योगदान दे सके। पूरे दस्तावेज़ में क्वाड का केवल एक बार संक्षिप्त उल्लेख हुआ है। जबकि इस समूह के साथ जुड़ाव को अमेरिकी रणनीति में भारत के बढ़े महत्त्व के साथ जोड़कर देखा जाता था।
2017 की रणनीति के उलट नए दस्तावेज़ में पाकिस्तान पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं है। दस्तावेज में चीन के बरक्स अमेरिका की बढ़ती गई कमजोरियों का उल्लेख है और उसका मुकाबला करने लिए अमेरिका को तैयार करने पर खासा जोर दिया गया है। मगर ऐसा लगता है कि इस मकसद को हासिल करने में अमेरिका अब भारत को ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं मानता। उधर अमेरिका की नई रणनीति में यूरोप का महत्त्व भी घटा है। इसके मुताबिक रूस के साथ “रणनीतिक स्थिरता को फिर स्थापित करना” अमेरिका का “मूलभूत हित है। यूक्रेन युद्ध पर यूरोपीय नेताओं के रुख की इसमें तीखी आलोचना की गई है। यानी ट्रंप प्रशासन ने अपनी रणनीति में भारत की तरह यूरोप का दर्जा भी गिरा दिया है।
