प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना के तहत अवसर एक लाख 65 हजार थे, लेकिन सवा 33 हजार नौजवान ही ज्वाइन करने को तैयार हुए। उनमें से भी लगभग 20 फीसदी ने बीच अवधि में ही इसे छोड़ दिया।
यह कहना शायद जल्दबाजी हो कि प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना फेल हो गई है। फिर भी यह तो कहा ही जाएगा कि ज्यादातर बेरोजगार नौजवानों को आकर्षित करने में यह विफल रही है। यह बात की पुष्टि खुद संसद में पेश सरकारी आंकड़े करते हैं। कंपनी मामलों के राज्यमंत्री हर्ष मल्होत्रा ने लोकसभा में बताया है कि पहले दो चरणों में सिर्फ 33,300 नौजवानों ने इंटर्नशिप स्वीकार की। उनमें से 6,618 ने बीच में ही इसे छोड़ दिया। पहले चरण में कंपनियों ने 82 हजार और दूसरे चरण में 83 हजार इंटर्नशिप के ऑफर दिए।
यानी अवसर एक लाख 65 हजार थे, जबकि सवा 33 हजार नौजवान ही ज्वाइन करने को तैयार हुए। उनमें से भी लगभग 20 फीसदी ने बीच अवधि में ही इसे छोड़ दिया। छोड़ने वालों में बड़ी संख्या उन इंटर्न्स की रही, जिन्होंने कार्यस्थल दूर होने या परिवहन सुविधाजनक ना होने को अपने फैसले की वजह बताया। गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र ने बड़े धूम-धड़ाके से यह योजना घोषित की थी। इसके तहत इंटर्नशिप लेने वाले नौजवानों को एक बार छह हजार रुपए के भुगतान के अलावा 12 महीनों तक पांच हजार रुपए का भत्ता देने का प्रावधान है। सरकार ने कहा था कि इस योजना के तहत पांच वर्ष में एक करोड़ नौजवानों को ट्रेनिंग दी जाएगी, ताकि वे रोजगार का कौशल हासिल कर सकें।
मगर पहले दो वर्ष में योजना पर अमल के जो आंकड़े सरकार ने दिए हैं, जाहिर है, वे निराशाजनक हैं। कारण बुनियादी है। बेरोजगारी की समस्या ऐसी मरहम-पट्टी से दूर नहीं होने वाली है। इसके लिए आर्थिक सोच में आमूल परिवर्तन करना होगा। उत्पादन एवं वितरण से संबंधित वास्तविक अर्थव्यवस्था तथा मानव विकास में लगातार निवेश हो, इसे सुनिश्चित करना होगा। मूलभूत क्षेत्रों में निवेश की कमी भारत में बेरोजगारी का प्रमुख कारण है। पिछले लोकसभा चुनाव में अचानक यह समस्या सतह पर उभरती नजर आने लगी। तो नरेंद्र मोदी सरकार ने इस योजना के जरिए समाधान का संदेश देने की कोशिश की। लेकिन गंभीर मसलों से सचमुच आंख मिलाने की इच्छाशक्ति ना हो, तो ऐसे संदेश बेअसर ही साबित होते हैँ।
