कहा गया था कि जीएसटी में कटौती से बाजार में खरीदारी इतनी ज्यादा बढ़ेगी कि सरकार के कर राजस्व में असल में इजाफा होगा। लेकिन जीएसटी वसूली के अक्टूबर के आंकड़ों ने इस उम्मीद पर पानी फेर दिया है।
एक ही दिन आई तीन खबरों ने उस गुब्बारे में पिन चुभो दी है कि जिसे वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के नए ढांचे को लागू होने के बाद फुलाया गया था। केंद्र ने आय कर की सीमा में बढ़ोतरी और कुछ वस्तुओं पर जीएसटी दर में कटौती को भारतीय अर्थव्यवस्था की तमाम समस्याओं का हल बताया। साथ ही कहा गया कि उन फैसलों से बाजार में खरीदारी इतनी ज्यादा बढ़ेगी कि सरकार के कर राजस्व में असल में इजाफा होगा। लेकिन जीएसटी वसूली के अक्टूबर के आंकड़ों ने इस उम्मीद पर पानी फेर दिया है। बेशक, अक्टूबर में अनेक उपभोक्ता वस्तुओं की ज्यादा खरीदारी हुई। वैसे तो त्योहार के सीज़न में बाजार में तेजी आती है, मगर इस बार यह अपेक्षाकृत अधिक रही। मगर इतनी नहीं कि जीएसटी में कटौती से हुई क्षति की भरपाई हो जाए। नतीजा है कि सितंबर की तुलना में जीएसटी वसूली में लगभग 25 हजार करोड़ रुपए की कमी आई। पिछले साल के अक्टूबर की तुलना में महज 0.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हुई।
इस सिलसिले में दो और आंकड़े अहम हो जाते हैं। अक्टूबर में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक 14 महीनों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। उधर मैनुफैक्चरिंग गतिविधियां नौ महीनों के सबसे निचले स्तर तक गिर गई हैं। इसका अर्थ है कि उत्पादकों को आने वाले महीनों में बाजार में तेजी रहने की उम्मीद नहीं है। त्योहारों से पहले उन्होंने उत्पादन जरूर बढ़ाए, मगर उन्हें अहसास है कि अक्टूबर में बढ़ी खरीदारियां जारी नहीं रहने वाली हैं। कारण साफ है। बाजार में तेजी तब निरंतर जारी रहती है, जब औसत आमदनी बढ़ रही हो। लेकिन रोजगार का बाजार गतिरुद्ध हो, तो ऐसा नहीं हो सकता। उस हाल में भविष्य की आशंका से ग्रस्त लोग बचत करने को तरजीह देते हैं। सिर्फ इसलिए कि टैक्स कटौती से चीजें कुछ सस्ती हो गई हों, लोग बाजार में नहीं उमड़ते। इसलिए जीएसटी वसूली में गिरावट दीर्घकालिक चिंता का कारण बन सकती है। आखिर राजस्व में कमी की भरपाई सरकार को कहीं से करनी होगी। तो उसकी मार कहां पड़ेगी, यह सवाल अहम हो गया है।
