ऐसे सारे निर्णय बिना किसी सार्वजनिक बहस के लिए जा रहे हैं। अतः इस अंदेशे में दम है कि भारत को एक ऐसे समाज में बदला जा रहा है, जहां व्यक्ति की प्राइवेसी के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी जाएगी।
हर स्मार्टफोन सेट में संचार साथी ऐप डालने के केंद्र के निर्देश पर जागरूक तबकों में उचित ही बेचैनी पैदा हुई है। सरकार का कहना है कि यह ऐप खोये हुए फोन पर नज़र रखने के लिए है। इससे खो गए फोन को ढूंढने में मदद मिलती है। मगर ऐसे ऐप को अपने फोन में रखा जाए या नहीं, इस चयन से व्यक्ति को वंचित कर देने की सोच घोर समस्याग्रस्त है। यह ऐसा ऐप होगा, जिसे हटाया नहीं जा सकेगा। यानी यह फोन के ऑपरेटिंग सिस्टम में शामिल होगा। इंटरनेट पर निजता के अधिकार के लिए सक्रिय कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि इस ऐप को अनिवार्य बनाने में सरकार सफल हो गई, तो भविष्य में डिजिटल आईडी ऐप को भी अनिवार्य बनाने का रास्ता खुल जाएगा। आशंका जायज है कि उस हाल में सरकार फोन से संबंधित तमाम गतिविधियों की लगातार निगरानी कर सकेगी।
गौरतलब है कि संचार साथी ऐप के बारे में निर्देश जारी करने से ठीक पहले सरकार ने मेसेजिंग ऐप को सिम कार्ड से अनिवार्य रूप से संबंधित करने का निर्देश इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को दिया। इस तरह 90 दिन की तय समयसीमा के बाद ह्वाट्सऐप या टेलीग्राम जैसे संचार माध्यमों का एक साथ दो फोन या टैब पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। इससे मेसेजिंग सेवा के उपयोग में एक अनावश्यक रुकावट डाल दी गई है। मुश्किल यह है कि ऐसे सारे निर्णय बिना किसी सार्वजनिक बहस और हित-धारकों को भरोसे में लिए थोप दिए जा रहे हैं। इसलिए गहरा रहे इस अंदेशे में दम है कि भारत को एक ऐसे समाज में बदला जा रहा है, जहां व्यक्ति की प्राइवेसी के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी जाएगी। अब तक आम समझ रही है कि फोन व्यक्ति का निजी स्थल है। इसीलिए अतीत में फोन टैपिंग को निजता में अनुचित दखल के रूप में देखा जाता था। मगर मौजूदा दौर में ऐसी सभी धारणाओं को निराधार बनाया जा रहा है। इसलिए बेहतर होगा कि सरकार ताजा निर्देश को वापस ले ले। वरना, सवाल उठेगा कि क्या भारत में संविधान प्रदत्त स्वतंत्रताओं का कोई महत्त्व रह गया है?
