जब ऐसे कदम उठाए जाते हैं, तो उसके लिए तर्क गढ़ लिए जाते हैँ। रोजगार बचाना आम दलील है। वीआई के मामले में यह भी कहा गया कि कंपनी फेल हुई, तो बाजार में जियो और एयरटेल का द्वि-अधिकार हो जाएगा।
आलोचक अक्सर कहते हैं कि मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था का वास्तविक अर्थ हैः फायदे का निजीकरण और घाटे का समाजीकरण। यानी जो फायदा हुआ, वह कंपनी मालिकों की जेब में जाएगा, लेकिन घाटा हुआ, तो उसे करदाताओं के पैसे भरा जाएगा। यह प्रवृत्ति अब बेहद आम हो चुकी। लेकिन इस कारण आर्थिक प्रबंधन का यह ढांचा आम जन की निगाह में लगातार अपनी साख खोता चला गया है। फिलहाल, इस प्रवत्ति के तहत भारतीय करदाताओं को 84 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक की चपत लगने की आशंका पैदा हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन आइडिया (वीआई) कंपनी पर बकाया एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) की कुल रकम का पुनर्मूल्यांकन करने और उसे माफ करने की अनुमति केंद्र को दे दी है।
यह फैसला सोमवार को आया और उसी दिन आय कर विभाग ने ट्रांसफर प्राइसिंग केस में इस कंपनी पर 8,500 करोड़ रुपये के बकाया से संबंधित मुकदमे को वापस ले लिया। 2020 के न्यायिक निर्णय के मुताबिक वीआई पर 58,254 करोड़ रुपये का बकाया एजीआर तय किया गया था। ब्याज, जुर्माना और जुर्माने पर ब्याज के साथ यह रकम 83,400 करोड़ रुपये से अधिक हो गई। अब ये सारी रकम माफ की जा सकेगी। इसके पहले केंद्र ने इस कंपनी को बेलआउट देने के क्रम में इसमें 49 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली थी। इसके तहत 36,950 करोड़ रुपये इस कंपनी में लगाए गए।
तब यह जुमला भुला दिया कि बिजनेस में शामिल होना सरकार का काम नहीं है! दरअसल, जब कभी ऐसे कदम उठाए जाते हैं, तो उसके लिए तर्क गढ़ लिए जाते हैँ। रोजगार बचाना एक आम दलील है। वीआई के मामले में यह भी कहा गया कि अगर कंपनी फेल हुई, तो बाजार में जियो और एयरटेल का द्वि-अधिकार हो जाएगा। मगर भारत सरकार को द्वि या एकाधिकार से कोई दिक्कत है, इसे मानने का शायद ही कोई आधार मौजूद हो! असल मकसद है अपनी अक्षमताओं के कारण फेल हो रही एक कंपनी को बचाना। यह सिरे से फ्री मार्केट सिद्धांत के खिलाफ है। दरअसल, ऐसे कदम क्रोनिज्म के दायरे में आते हैं। मगर आज इसकी शायद ही किसी को फिक्र हो!
