समस्या की जड़ जहां

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आय कर और जीएसटी दरों में कटौती जैसे कदमों से लोगों को बेशक कुछ राहत मिली है, लेकिन असल सवाल है कि क्या इससे लोगों के हाथ में इतना पैसा बचने लगेगा, जिसे खर्च करने के वे उपाय ढूंढने लगेंगे?

भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने यह पहली बार नहीं कहा है, मगर जीएसटी ढांचे में बदलाव को लेकर उम्मीद जगाने का अभी जैसा माहौल है, उसके बीच ये बात खास प्रासंगिक हो जाती है। उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट सेक्टर में मुनाफा जिस दर से बढ़ा है, कर्मचारियों की तनख्वाह में उससे काफी कम वृद्धि हुई है। नागेश्वरन ने कहाः ‘टॉप 25 मैनुफैक्चरिंग कंपनियों का रिकॉर्ड देखें या सामान्यतः पूरे प्राइवेट सेक्टर पर गौर करें, तो यह सच्चाई नजर आएगी कि मुनाफे की दर की तुलना में तनाख्वाह में वृद्धि काफी पीछे रही है।

एआई की वजह से ये समस्या आगे और विकट हो जाएगी।’ तनख्वाह वृद्धि की तुलना अगर गुजरे पांच वर्ष में रही मुद्रास्फीति दर से की जाए, तो बाजार में आज जो हालात हैं, उन्हें और भी बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। ऐसी तुलनाओं से सामने आया है कि अधिकांश कर्मचारियों की वास्तविक आय लगभग जहां की तहां रही है। और फिर ये बात संगठित क्षेत्र की है, जिसके कर्मचारियों का हाल फिर भी बेहतर रहता है। गुजरे दस वर्षों के अंदर ऐसे भी दौर आए हैं, जब असंगठित क्षेत्र में वास्तविक आय में असल में गिरावट आई, जबकि इस क्षेत्र में भारत के लगभग 90 फीसदी कामकाजी लोग काम करते हैं। उपभोग में गिरावट ऐसी हालत का स्वाभाविक परिणाम होता है। बाजार में मांग की कमी की शिकायतों की जड़ इस हाल में ही छिपी हुई हैँ।

सरकार ने इसका समाधान पहले आय कर सीमा बढ़ा कर और अब जीएसटी दरों में कटौती करके ढूंढने की कोशिश की है। इन कदमों से लोगों को बेशक कुछ राहत मिली है, लेकिन असल सवाल है कि क्या इससे लोगों के हाथ में इतना पैसा बचने लगेगा, जिसे खर्च करने के वे उपाय ढूंढने लगेंगे? जिस समय आमदनी की बुनियादी स्थितियां जस की तस हैं और ऊपर से डॉनल्ड ट्रंप की नीतियों की मार से लाखों रोजगार पर तलवार लटक गई है, तथा एआई जैसी एवं अन्य तमाम किस्म की चुनौतियां सामने हैं, जरूरत हवाई माहौल बनाने के बजाय सतर्क नजरिया अपनाने की है।


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