बिहार में कहानी उसी की जो ट्रेंड करना जानता है!

बिहार को मैं दूर से देख रही हूँ! कुछ वैसे ही जैसे एक ही सूरज ढलते हुए हर बार कुछ अलग लगता है, फिर भी हर बार वैसा ही। रिपोर्टरों की रिपोर्टों से, विश्लेषणों से और बिहार की नब्ज़ पकड़ने का दावा करने वाले सर्वेक्षणों की गणित में लोग अनुमानों, प्रतिशतों में चाहे जितने बंटे… Continue reading बिहार में कहानी उसी की जो ट्रेंड करना जानता है!

जब ख़बरें ‘नई’ लगना बंद कर दे

डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वे तीस साल बाद फिर से परमाणु परीक्षण शुरू करेंगे। उधर पाकिस्तान ने धमकी दी है कि तालिबान को फिर से गुफ़ाओं में धकेलने के लिए वह अपने जखीरे का “एक अंश” खोल देगा। ग़ाज़ा में एक और रात रॉकेटों के आसमान तले गुज़री। इज़राइल की ताज़ा हवाई बमबारी… Continue reading जब ख़बरें ‘नई’ लगना बंद कर दे

जीवित रहने की बहस में सकंल्प कब?

क्या जलवायु चिंता से शुरू कोप (COP) सम्मेलन कुछ मायने रखता हैं? या सिर्फ बस एक नौटंकी है? यह प्रश्न अब स्थाई है पर बेचैन करने वाला, आवश्यक भी, मगर अनुत्तरित। क्या COP सम्मेलन से तनिक भी कुछ बदलता हैं? फिलहाल ब्राज़ील के बेले (Belém) में COP30 की तैयारी हो रही है। सो “पार्टियों का… Continue reading जीवित रहने की बहस में सकंल्प कब?

दीवाली क्यों अपनी ख़ुशी के लिए माफ़ी मांगे?

हर साल, घड़ी की तरह, हंगामा फिर शुरू है। दीया बुझा भी नहीं होता कि नसीहत, प्रवचन बरसने लगे हैं। हवा के प्रदूषण के एक्यूआई (AQI) चार्ट टाइमलाइन पर आ गए हैं। नैतिक भाषण पैनलों पर भर जाते हैं, और वही परिचित एलिट- अभिजात वर्ग का कोरस फिर मंच पर है। हर दिन बढ़ता शोर… Continue reading दीवाली क्यों अपनी ख़ुशी के लिए माफ़ी मांगे?

आसियान में रौनक है और सार्क खत्म?

हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब संस्थाएँ और गठबंधन, जो कभी सामूहिक इच्छा के प्रतीक थे, अपना अर्थ अब खोते हुए हैं। जैसे संयुक्त राष्ट्र का नैतिक बल अब अर्थहीन है। नाटो अपने उद्देश्य में भटक गया है।  जी-7 के देश आपस में उलझे हुए है। वही जी-20 अपनी ही कलह में लड़खड़ा… Continue reading आसियान में रौनक है और सार्क खत्म?

इतिहास राख में ही लोटपोट रहता है!

दुनिया हमेशा धुएँ की हल्की-सी गंध में जीती आई है, कुछ स्मृति से उठती, कुछ स्थाई या घटना विशेष से जलती हुई। यदि इतिहास से उसका रोमांच निकाल दे, तो जो बचता है वह बस मलबा है विरासत के वस्त्रों में सजा हुआ। ट्रॉय की राख, यूरोप की खाइयाँ, हिरोशिमा की चमक, काबुल की धूल।… Continue reading इतिहास राख में ही लोटपोट रहता है!

फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति जेल की दालान में!

हर गणराज्य के दो चेहरे होते हैं, एक जो आज़ादी के वादे से जगमगाता है, दूसरा वह जो भ्रष्टाचार की अनदेखी, दण्डहीनता की चुप सड़न में ढंका रहता है। राष्ट्र आज़ादी के संकल्प से उठते हैं, फिर धीरे-धीरे उन्हीं मूर्तियों के आगे झुक जाते हैं जिन्हें लोगों ने खुद गढ़ा होता है। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति… Continue reading फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति जेल की दालान में!

“हम वैश्विक तबाही की ओर बढ़ रहे हैं”

हम खतरनाक समय में जी रहे हैं! और यह न रूपक में, न मनोदशा में, बल्कि मापी जा सकने वाली सच्ची बात है। यह किसी हेडलाइन या चिंता से उपजी अतिशयोक्ति नहीं है। यह विज्ञान है। मानवता अब आत्मविनाश के कितने करीब पहुँच चुकी है, इसका प्रतीक “डूम्सडे क्लॉक” का इस साल 89 सेकंड पर… Continue reading “हम वैश्विक तबाही की ओर बढ़ रहे हैं”

थोपे गए सन्नाटे का नाम शांति

शांति, शांति तब तक ही रहती है जब तक वह स्वीकार्य है। जैसे ही सत्ता भारी पड़ने लगती है—प्रभावशाली, स्वार्थी और आत्ममुग्ध—शांति दरकने लगती है, टूटने लगती है। बेशक, शुरुआत के लिए यह एक उदास वाक्य है, लेकिन मौजूदा समय की सच्चाई यही है। पश्चिम एशिया में जो “शांति” आई है, वह दो वर्षों की… Continue reading थोपे गए सन्नाटे का नाम शांति

तालिबानी अब हमारे सखा है!

कुछ दिनों से भारत में एक ही ख़बर है! और वह एक  तालिबानी के दौरे की है। बाक़ी सब कुछ, चाहे बिहार चुनाव हो, सीट बँटवारे की जोड़-बाकि, या ग़ाज़ा में युद्धविराम की खबर, सब साइडलाइन पर खिसक गए हैं। दिल्ली का फोकस केवल तालिबान पर केंद्रित है। और यह सिर्फ़ जिज्ञासा नहीं है। हाँ,… Continue reading तालिबानी अब हमारे सखा है!

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