दो सौ बहत्तर रखवालों को श्रद्धा-अंजलि

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जब कभी ये 272 जन्म कुंडलियां खंगाली जाएंगी, उन में से बहुतों की असलियत सुन कर भारतमाता के होश उड़ जाएंगे।… साहित्यकार, लेखक, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता जेलों में ठूंसे जाते रहे, तब ये 272 बुद्धिविलासी कहां थे? क़ानूनी प्रक्रियाओं की खुली अवहेलना कर सैकड़ों लोगों को जेल भेजा गया, तब इन में से कोई बोला?

दो सौ बहत्तर रंगे सियारों को एकाएक अहसास हुआ कि अब तो राहुल गांधी ने संवैधानिक संस्थानों के किए-धरे पर सवाल उठाने की हद ही कर दी है, सो, उन्होंने एक संयुक्त ‘हुआं-हुआं ख़त’ लिख डाला। कहा कि राहुल ज़हरीले शब्दाडंबर के ज़रिए राष्ट्रीय संवैधानिक हस्तियों पर उकसाऊ और तथ्यहीन आरोप लगा कर ऐसा माहौल बना रहे हैं, गोया मुल्क़ का समूचा संवैधानिक ढांचा भंग हो गया हो। अपने पत्र में इन महामानवों ने लिखा है कि विपक्ष के कुछ नेता निर्वाचन आयोग की साख पर साज़िशाना हमले कर रहे हैं, संसद की संविधानसम्मत कार्यवाही पर सवाल कर रहे हैं, न्यायपालिका की न्यायसंगति पर उंगली उठा रहे हैं और सेना की बहादुरी और उपलब्धियों पर संदेहों को हवा दे रहे हैं।

16 पूर्व न्यायमूर्तियों, 123 पूर्व नौकरशाहों और 133 पूर्व सैन्यकर्मियों द्वारा हस्ताक्षरित इस खुले पत्र में कहा गया है कि विपक्षी नेताओं का यह रवैया चुनावों में लगातार हो रही उन की हार से उपजी घोर हताशा का नतीजा है। इसलिए नागरिक समाज और आम नागरिकों का कर्तव्य है कि वे पूरी दृढ़ता से निर्वाचन आयोग के साथ खड़े रहें। चिट्ठी में सेना, कार्यपालिका और न्यायपालिका की मौजूदा भूमिका में अगाध विश्वास ज़ाहिर किया गया है और ख़ासकर निर्वाचन आयोग में अपनी प्रतिबद्धता का उद्घोष कर उस से गुज़ारिश की गई है कि वह अपनी राह पर अबाध गति से आगे बढ़ता रहे।

11 साल से अन्यान्य कारणों से चुप्पी साधे बैठे महामनाओं की निद्रा भंग होती देख मैं बाग-बाग हूं। पिछले एक दशक में इन की रातों की नींद न तो किसान आंदोलन के वक़्त हराम हुई थी, न मणिपुर के आसमान में उठी लपटों के बीच। न मोरवी-पुल के धड़ाम होने ने उन्हें विचलित किया, न पहलगाम के हादसे ने। न कोरोना-काल में अपनी मां-पत्नी को पीठ पर लादे पैदल चल कर हज़ारों मील दूर अपने गांव पहुंचे लोगों के काफ़िले इन मान्यवरों को द्रवित कर पाए थे, न नोटबंदी के बाद बैंकों की कतार में खड़े-खड़े भूखे-प्यासे मर गए लोगों को देख कर उन के चित्त पसीजे थे।

संसदीय समितियों को तफ़सील से परीक्षण के लिए भेजे जाने वाले विधेयकों की तादाद पिछले 11 साल में घट कर 15 प्रतिशत रह गई है, मगर ये 272 ज़ुबानें ख़ामोश बनी रहीं। दिसंबर 2023 में 78 सांसदों को निलंबित कर विधेयक पारित कराए गए, तब इन में से किसी को ‘अब तो हद हो गई’ नहीं लगा। सरकार महत्वपूर्ण विधेयकों को राज्यसभा में पारित कराने से बचने के लिए उन्हें धन-विधेयक का दर्ज़ा देती रही, मगर तब सारे न्यायविद् मूर्ति बने बैठे रहे। 17 वीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल में किसी को उपाध्यक्ष नियुक्त नहीं किया गया और अब 18 वीं लोकसभा में भी वही हाल है, मगर आज सुधारवादी होने का सेहरा सिर पर बांधे घूम रहे इन माथों पर कभी शिकन नहीं पड़ी। इलेक्टोरल बांड्स आए, तब आज की ‘खुला पत्र विद्वत परिषद‘ की सदस्यता ग्रहण कर इठला रही इन रंग-बिरंगी शक़्लों में से कोई फुसफुसाया तक नहीं।

साहित्यकार, लेखक, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता जेलों में ठूंसे जाते रहे, तब ये 272 बुद्धिविलासी कहां थे? क़ानूनी प्रक्रियाओं की खुली अवहेलना कर सैकड़ों लोगों को जेल भेजा गया, तब इन में से कोई बोला? असहमति ज़ाहिर करने की वज़ह से बिना ज़मानत के बरसों से जेलों में पता नहीं कितने लोग पड़े हैं और राम-रहीमों को हर चुनाव के समय फरलो पर जेल से बाहर भेज दिया जाता है, आसारामों को ज़मानत मिल जाती है, जेलों में बैठ कर लोग उगाही का धंधा चला रहे हैं, हज़ारों करोड़ रुपए का घोटाला करने वाले सीना तान कर घूम रहे हैं, उद्योगपतियों के खरबों रुपए के कर्ज़ माफ़ हो रहे हैं और मराठवाड़ा के किसान अब भी रोज़ ख़ुदकशी कर रहे हैं। ये 272 मूर्धन्य इस सब पर कोई खुला पत्र किसी को कभी नहीं लिखते।

मैं इस शवपरीक्षा में तो पड़ना ही नहीं चाहता कि इन 272 अज़ीमुश्शानों में से किस-किस का अतीत कितना उजला रहा है, कौन-कौन कितना निष्पक्ष रहा है और किस-किस ने कितनी हरिचंद्री ज़िंदगी बसर की है। वंशावलियों का यह अध्ययन पता नहीं किन परतों को उजागर करेगा! इसलिए उन मुट्ठियों को क्या खोलना, जो दूर से आप को लाख की लग रही हैं! कभी-कभी गफ़लत में रहने का भी अपना मज़ा है। सो, उन्हें भी रहने दीजिए और आप-हम भी रहें। जब कभी ये 272 जन्म कुंडलियां खंगाली जाएंगी, उन में से बहुतों की असलियत सुन कर भारतमाता के होश उड़ जाएंगे।

राहुल और विपक्ष के बाकी नेताओं की भर्त्सना का यह खुला पत्र गले में टांग कर सत्ता-अनुचर नाच रहे हैं। इस प्रायोजित पत्र-मंचन की बिसात जिस ने भी बिछवाई, देश का बड़ा कल्याण किया। उस ने तरह-तरह की खाल ओढ़ कर अलग-अलग कंगूरों पर विराजे 272 प्रातःस्मरणीयों को एक साथ बेनकाब कर दिया। हम-आप इन्हें ढूंढने निकलते तो बरसों पता ही नहीं चलता कि कौन-कौन, कहां-कहां, कैसा-कैसा मुखौटा लगा कर कब से पसरा पड़ा है। कोई इन से पूछे कि 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल की कांग्रेस को मिले 13 करोड़ 67 लाख मतदाताओं के खुले समर्थन-पत्र पर इन का क्या कहना है? इन में से कोई बताए कि लोकसभा चुनाव में नरेंद्र भाई मोदी के ख़िलाफ़ 41 करोड़ 4 लाख मतदाताओं के हस्ताक्षरित पत्र पर इन की क्या राय है?

इस वक़्त जब मैं अपना यह स्तंभ लिख रहा हूं, भारत की जनसंख्या घड़ी 1 अरब 46 करोड़ 89 लाख 37 हज़ार 751 का अंक दिखा रही है। इस लिहाज़ से इन 272 पत्र-वीरों में से प्रत्येक 54-54 लाख नागरिकों का प्रतिनिधित्व कर रहा है। सो, मेरे पास उन की चिट्ठी पर गौर करने के अलावा और चारा ही क्या है? चाहें तो आप भी उन्हें गंभीरता से लीजिए। उन की लिखी बातों को और भी ज़्यादा गंभीरता से लीजिए। मगर मेरे उठाए मुद्दों पर भी कभी एकाग्र हो कर सोचिए।

प्रतिपक्ष को रामदीन की लुगाई समझने वालों को याद रखना चाहिए कि जनतंत्र एकपक्षीय व्यवस्था नहीं है। संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका थानेदारी की नहीं, लोकतंत्र के बहाव का हमवार बनने की है। उन का फ़र्ज़ है कि वे सभी के लिए समतल मैदान उपलब्ध कराएं। पिछले दस साल में संसद, कार्यपालिका और न्यायपालिका में समदर्शी भावना का क्षरण हुआ है। मीडिया को लोकतंत्र का चैथा स्तंभ बताते-बताते हम सब की ज़ुबान घिस गई। मगर वह तो अब सीधे शास्त्रविरुद्ध कर्मकांड का दरबान बना हुआ है।

ऐसे में, 272 के पत्र का प्रतिकार 2072 या 20072 या 200072 की चिट्ठी से नहीं, उस सकारात्मक अंतःप्रवाह से होगा, जो ऐसे मौक़े पर किसी भी जम्हूरियत में उपजना चाहिए। चंद पूर्व न्यायमूर्ति, चंद पूर्व नौकरशाह और चंद पूर्व सैन्यकर्मी ही देश नहीं हैं। देश उन से भी बना है, जो कभी न्यायाधीश नहीं रहे, कभी अफ़सर नहीं रहे और जिन्हें कभी सेना की सेवा का अवसर नहीं मिला। वे सब भी न्यायप्रिय हैं, वे सब भी कार्यपालिक अनुशासन से बंधे हैं और उन सब के सामाजिक जीवन में भी सेनाओं के शौर्य जैसा ही जज़्बा है। इसलिए चिट्ठी की घुड़की देने वाले जनतांत्रिक व्यवस्था में प्रतिपक्ष का सम्मान करना जितनी जल्दी सीख लेंगे, भारत का उतनी ही जल्दी अभ्युदय होगा।


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