चुनाव आयोग पर सभी का विश्वास क्यों नहीं?

Categorized as लेख

बिहार चुनाव से चुनाव आयोग की निष्पक्षता, राजनीतिक दलों के आचरण और चुनाव जीतने की रणनीति सभी पर गंभीर चर्चा है। पर आयोग को चाहिए कि वह अपने हर निर्णय में पारदर्शिता, कठोरता और समान व्यवहार बनाए रखे, तभी वह जनता का भरोसा लौटाने में कामयाब होगा। विपक्ष को अपनी कमियों से सीख लेनी होगी, ताकि वे सशक्त विकल्प बन सकें और लोकतंत्र को मजबूती दे सकें।

हाल में हुए बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में चुनाव आयोग की भूमिका और उस पर उठते सवालों ने एक बार फिर चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर बहस छेड़ दी है। एनडीए की ऐतिहासिक जीत और महागठबंधन (इंडिया एलायंस) की करारी हार के बीच, मुख्य सवाल यही उठा कि क्या चुनाव आयोग ने अपने संवैधानिक कर्तव्यों का सही तरह से निर्वहन किया? साथ ही, आचार संहिता के उल्लंघन, राजनीतिक दलों के आचरण और आयोग पर दोहरे मानदंडों के आरोपों ने भी चुनावी निष्पक्षता की मूल भावना को चुनौती दी है।

हाल के चुनावों में चुनाव आयोग पर पक्षपात और दोहरे मानदंड अपनाने के आरोप लगे। खास तौर पर, कांग्रेस और महागठबंधन ने वोटर लिस्ट, अधिकारियों की नियुक्ति और निष्पक्ष मतदान पर गंभीर सवाल खड़े किए। आरोप है कि कुछ विधानसभा क्षेत्रों में वोटर लिस्ट से लाखों नाम हटा दिए गए या मनमाने ढंग से जोड़े-घटाए गए। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि आयोग ने भाजपा शासित राज्यों से चयनित नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों को चुनावी पर्यवेक्षक नियुक्त कर पक्षपातपूर्ण रवैया दिखाया। विपक्ष ने मतदान प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े करते हुए कहा कि आयोग की प्रक्रिया आम जनता का भरोसा कायम नहीं रख पा रही है।

इस चुनाव में लगभग सभी प्रमुख दलों के सोशल मीडिया पर भड़काऊ, जातिवादी और भ्रामक कंटेंट साझा होने के आरोप लगे। बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने ऐसे लगभग 21 एफआईआर दर्ज किए, जिनमें भाजपा, राजद और कांग्रेस जैसे बड़े दलों के खिलाफ भी कार्रवाई हुई। कई सोशल मीडिया हैंडल्स पर तो गुमराह करने वाले AI-जनित वीडियो और दीपफेक कंटेंट डालने के आरोप मिले, जिन्हे तुरंत हटवाया गया।

आयोग द्वारा आचार संहिता के पालन के लिए सोशल मीडिया पर निगरानी करने की व्यवस्था थी, परंतु बड़ी संख्या में भड़काऊ और गुमराह करने वाले पोस्ट सामने आए, जिससे आयोग की प्रभावशीलता को लेकर सवाल भी उठे।

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनाव आयोग की सबसे अहम जिम्मेदारी है, चुनाव प्रक्रिया को स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना। आयोग को अपने हर कदम पर समानता और पारदर्शिता का पालन करना चाहिए। आयोग की साख को बहाल करने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाने चाहिए। जैसे कि सभी दलों की शिकायतों की सार्वजनिक व स्वतंत्र जाँच। पर्यवेक्षकों और चुनावी कर्मियों की निष्पक्ष नियुक्ति जो कि राजनीतिक झुकाव से दूर रहते हुए की जाए। वोटर लिस्ट की शुद्धता और अद्यतन प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी बनाना। सोशल मीडिया व डिजिटल प्रचार पर कठोर निगरानी और दोषियों पर तत्काल कार्रवाई। आचार संहिता उल्लंघन पर बिना किसी भेदभाव के उचित व सख़्त न्यायिक कार्यवाही।

वहीं देखा जाए तो महागठबंधन (इंडिया एलायंस) रणनीतिक स्तर पर संगठित नहीं हो सका। सीट शेयरिंग, यानी सीटों का बँटवारा, चुनाव से ठीक पहले तय हुआ, जिससे अभियान की गति और एकता दोनों प्रभावित रहीं। तेजस्वी यादव के देर से सक्रिय चुनाव प्रचार, गठबंधन में सहयोगी दलों के मतभेद और साझा विजन की कमी ने विपक्ष की प्रभावशीलता कम कर दी। साथ ही, कांग्रेस जैसी सहयोगी दल ज़मीनी स्तर पर मतदाताओं को लामबंद करने में नाकाम रही। ऐसे समय में जब एनडीए अपनी एकजुटता दिखा रहा था, महागठबंधन अपनी आंतरिक समस्याओं में उलझ कर रह गया।

महागठबंधन ने मुख्य रूप से सत्ता विरोधी लहर (एंटी-इन्कम्बेंसी) पर ज्यादा दांव लगाया, जबकि एनडीए ने अपनी स्थिरता, विकास, और समावेशिता के एजेंडा के साथ मतदाताओं को बेहतर तरीके से साधने में सफल रहा। जातिगत समीकरणों को लेकर महागठबंधन ने पारंपरिक रणनीति अपनाई, परंतु दलित, महिला, और अति पिछड़ा वर्ग को खास तौर पर टार्गेट करके एनडीए ने अपने पुराने वोट बैंक के दायरे को काफी विस्तार दिया। जो एनडीए की ऐतिहासिक जीत का कारक बना। इसके साथ ही महिलाओं को लुभाने के लिए दिए गए अनुदान ने भी इस चुनाव परिणाम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

बहरहाल चुनाव चाहे किसी राज्य की सरकार का हो या केंद्र की सरकार का, हर राजनैतिक दल मतदाताओं को लुभाने की मंशा से ऐसे कई वादे करते हैं जो वास्तव में सच नहीं किए जाते। यदि जनता को चुनावों में किए गए वादों और उन्हें पूरा किए जाने के अंतर की देखा जाए तो यह अंतर काफ़ी बड़ी संख्या में पाया जाएगा। चुनावों से पहले ऐसे वादे हर राजनैतिक दल द्वारा किए जाते हैं।

जिस तरह बिहार की जनता ने एक बार फिर से नीतीश कुमार में अपना विश्वास जताया है उससे यह बात तो तय है कि जनता को किए गए चुनावी वादे काफ़ी लुभावने थे। परंतु मतदाताओं यह सोचना होगा कि वादों की सूची और उन्हें पूरा करने में जिस भी दल का अंतर सबसे कम हो वही दल जनता के हित की सोचता है, तभी उसी दल को चुना जाता है। यदि सभी दल एक समान हैं तो जनता को चुनावी वादों से भ्रमित होकर इनमें फँसना नहीं चाहिए।

बिहार चुनाव से चुनाव आयोग की निष्पक्षता, राजनीतिक दलों के आचरण और चुनाव जीतने की रणनीति सभी पर गंभीर चर्चा है। पर आयोग को चाहिए कि वह अपने हर निर्णय में पारदर्शिता, कठोरता और समान व्यवहार बनाए रखे, तभी वह जनता का भरोसा लौटाने में कामयाब होगा। साथ ही, विपक्ष को चुनावी रणनीति बनाने और आंतरिक समन्वय में अपनी कमियों से सीख लेनी होगी, ताकि वे सशक्त विकल्प बन सकें और लोकतंत्र को मजबूती दे सकें।


Previous News Next News

More News

सरकार का बड़ा फैसला, हाई-डोज निमेसुलाइड दवाओं पर लगाई रोक

December 31, 2025

सरकार ने दर्द और बुखार की दवाओं की उन सभी ओरल दवाओं के निर्माण, बिक्री और वितरण पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी है, जिनमें निमेसुलाइड 100 मिलीग्राम से अधिक मात्रा में होता है और जो तुरंत असर करने वाली (इमीडिएट-रिलीज) होती हैं।  यह दवा ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धारा 26ए के…

डिलीवरी और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से जुड़े वर्कर्स ने फिक्स सैलरी और सुरक्षा की मांग उठाई

December 31, 2025

प्रमुख डिलीवरी और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से जुड़े वर्कर्स का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। बुधवार को कई शहरों में गिग वर्कर्स ने हड़ताल का ऐलान किया है। इसी बीच, डिलीवरी पार्टनर्स का कहना है कि उनसे 14 घंटे तक काम लिया जाता है, लेकिन उसके हिसाब से कंपनियां पैसा नहीं देती हैं।  दिल्ली में समाचार…

डिलीवरी और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से जुड़े वर्कर्स ने फिक्स सैलरी और सुरक्षा की मांग उठाई

December 31, 2025

प्रमुख डिलीवरी और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से जुड़े वर्कर्स का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। बुधवार को कई शहरों में गिग वर्कर्स ने हड़ताल का ऐलान किया है। इसी बीच, डिलीवरी पार्टनर्स का कहना है कि उनसे 14 घंटे तक काम लिया जाता है, लेकिन उसके हिसाब से कंपनियां पैसा नहीं देती हैं।  दिल्ली में समाचार…

गिग वर्कर्स की हड़ताल के बीच स्विगी और जोमैटो ने बढ़ाया डिलीवरी इंसेंटिव

December 31, 2025

फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी और जोमैटो ने डिलीवरी पार्टनर्स की हड़ताल के बीच पीक घंटों और साल के अंतिम दिनों के लिए अधिक इंसेंटिव का ऐलान किया है।   इस इंसेंटिव का ऐलान ऐसे समय पर किया गया है, जब गिग और प्लेटफॉर्म कर्मचारियों ने राष्ट्रीय स्तर पर हड़ताल का ऐलान किया है।  डिलीवरी वर्कर्स यूनियन…

गिग वर्कर्स की हड़ताल के बीच स्विगी और जोमैटो ने बढ़ाया डिलीवरी इंसेंटिव

December 31, 2025

फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी और जोमैटो ने डिलीवरी पार्टनर्स की हड़ताल के बीच पीक घंटों और साल के अंतिम दिनों के लिए अधिक इंसेंटिव का ऐलान किया है।   इस इंसेंटिव का ऐलान ऐसे समय पर किया गया है, जब गिग और प्लेटफॉर्म कर्मचारियों ने राष्ट्रीय स्तर पर हड़ताल का ऐलान किया है।  डिलीवरी वर्कर्स यूनियन…

logo