बीजेपी की यही सफलता ! पुलिस प्रशासन में भी धर्म जाति के आधार पर भेद कर दिया ! कर्नल सोफिया कुरैशी सेना की प्रवक्ता के तौर पर काम कर रहीं थीं। कुछ भी उनके खिलाफ नहीं था। तो कोई सामान्य भक्त या ट्रोल नहीं एक मंत्री उनके खिलाफ आया। सीधे पाकिस्तान से संबंध जोड़ने। नहीं थी प्रधानमंत्री मोदी में इतनी हिम्मत की उसकी निंदा करते। सरकार से निकालते। पार्टी से निकालते।
ग्वालियर की सीएसपी हिना खान के जय श्री राम के नारे लगाए जाने से लोग बहुत खुश हैं। ठीक है। उनकी प्रत्युत्पन्नमति ने न केवल स्थिति को तत्काल संभाला बल्कि बवाली वकील अनिल मिश्रा को बैकफुट पर भी धकेल दिया।
लेकिन यहां प्रशासनिक समझ बूझ का एक सवाल बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसे धर्म और जाति के बवाल उठाकर पूरे ग्वालियर को तनाव में डालने और देश भर में जातिगत नफरत फैलाने वाले व्यक्ति के घर के बाहर एक युवा और वह भी मुस्लिम पुलिस अधिकारी को लगाने का फैसला क्या मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने जानबूझकर लिया था?
सारा वरिष्ठ प्रशासनिक अमला जानता है कि ऐसे समय जब अनिल मिश्रा डॉ. आम्बेडकर को गालियां देकर देश भर में तनाव भड़काने की कोशिश कर रहे हैं तो ऐसे में स्थिति संभालने के लिए वहां किसी सीनियर पुलिस और प्रशासनिक आफिसर को रहना चाहिए था। बस एक काम चाहे वह संयोग से हुआ हो या सोच समझकर सही हुआ कि वहां किसी दलित पुलिस अफसर की ड्यूटि नहीं लगाई। नहीं तो दलितों के खिलाफ बहुत अपमानजनक भाषा बोल रहे अनिल मिश्रा और उनके समर्थक बड़ा उपद्रव कर सकते थे।
बीजेपी की सबसे बड़ी सफलता यह है कि प्रशासन में भी उसने पूरी तरह नफरत के बीज बो दिए हैं। वहां पहले हिन्दू मुसलमान किया। और अब दलित सवर्ण, सवर्ण सवर्ण, जिसमें ठाकुर वर्सेंस ब्राह्म्ण कर दिया।
राज्यों में इससे पहले इतनी खराब स्थिति नहीं थी। मध्य प्रदेश में 22 साल से बीजेपी सरकार है। बीच में बस एक साल नहीं रही। वहां मोदी केप्रधानमंत्री बनने के बाद भी धर्म जाति का ऐसा विभाजन नहीं हुआ था। मगर उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद से बीजेपी शासित दूसर राज्यों में भी नफरत और विभाजन तेज हुआ है।
मध्यप्रदेश का ही एक उदाहरण है सीएसपी हिना खान की तरह यहीं की आर्मी की कर्नल सोफिया कुरैशी भी कुछ दिन पहले तक वायरल हो रही थीं। प्रशंसा में। और फिर मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार के एक मंत्री विजय शाह ने उनके बारे में अनाप शनाप बोला। मुस्लिम हैं तो पाकिस्तान की आतंकवादियों की बहन बता दिया। सुप्रीम कोर्ट तक मामला गया। क्या हुआ? अभी भी मंत्री हैं। यह बीजेपी की नफरत और विभाजन फैलाने वाली राजनीति का एक सबसे बड़ा उदाहरण है कि अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए वह सेना की कर्ऩल तक का सम्मान बचाने की भी कोशिश नहीं करती है।
भक्त, बीजेपी संघ के लोग बहुत खुश होते हैं नफरत और विभाजन बढ़ता देखकर। उन्हें कभी प्रगति, प्रेम से खुश होना सिखाया ही नहीं गया। विरोधाभासों में उनका विकास किया गया है। दूसरे धर्म की आलोचना सुनकर खुश होना।
कर्नल सोफिया कुरैशी सेना की प्रवक्ता के तौर पर काम कर रहीं थीं। कुछ भी उनके खिलाफ नहीं था। तो कोई सामान्य भक्त या ट्रोल नहीं एक मंत्री उनके खिलाफ आया। सीधे पाकिस्तान से संबंध जोड़ने। नहीं थी प्रधानमंत्री मोदी में इतनी हिम्मत की उसकी निंदा करते। सरकार से निकालते। पार्टी से निकालते।
कैसे करते? सिखाया ही यह गया है कि सिर्फ मुसलमान नाम हो तो उसके खिलाफ कुछ भी कर दो। लेकिन यह जहर रुकता तो नहीं। मुसलमानों के बाद दलितों के खिलाफ गया। पिछड़ों के खिलाफ। यह जहर कहां तक जाएगा किसी को नहीं मालूम। देश को कितना नुकसान करेगा, बीजेपी को इसकी कोई चिंता नहीं। जब तक वोट मिल रहे हैं बीजेपी नहीं सोचेगी।
अब बिहार में उनका यह हिन्दू-मुसलमान कामयाब होता है या नहीं देखना होगा! अगर यहां फेल हुआ जिसकी बहुत संभावनाएं हैं तो फिर शायद एक बार बीजेपी को समझ में आएगा कि उसने इस नफरत की राजनीति के चक्कर में देश का कितना नुकसान कर दिया। धर्म जातियों में बंटा भारत कितना कमजोर है।
भारत का बौद्धिक विकास रोक दिया। सब कुछ स्टिरियो टाइप हो गया। एक धारणा फैलाते हैं सब उसी तरह सोचने लगते हैं। ग्वालियर में हिन्दू धर्म सनातन का कोई मामला ही नहीं था। केवल प्रशासनिक व्यवस्था कायम रखना थी। युवा पुलिस अधिकारी से कहा आप सनातन विरोधी हैं। जय श्री राम के नारे लगाने लगे। पुलिस अफसर ने भी लगा दिए। कहा सनातन विरोधी नहीं है। ला एंड आर्डर का मामला है।
अब दिमाग जो कुछ नारों, नरेटिव ( धारणाओं) में उलझा दिया गया है, वह सिर्फ नारे लगाने को महिला पुलिस अफसर की बड़ी बात बता रहा है। कितने हैरानी की बात है कि इसी भारत में करीब सौ साल पहले उर्दू के आधुनिक शायरों में सबसे बड़े अल्लामा इकबाल लिख चुके है कि – “ है राम के वजूद पर हिन्दोस्तां को नाज। अहले नजर समझते हैं इस को इमामे हिन्द !”
बीजेपी ने सब पैमाने ऐसे बना दिए है जिससे नफरत फैले। राम पर आज तक एक भी मुसलमान ने कभी गलत नहीं कहा। जबकि सम्मान से प्रेम से लिखने के अनेक उदाहरण हैं। एक और देते हैं –
“भूल जाता हूं मैं खुदाई को
उस से जब राम राम होती है!”
जोशिश अजिमाबादी का यह शेर भारत के गांव शहर हर जगह की असली कहानी पेश करता है।
राम राम भारत का सबसे ज्यादा किया जाने वाला अभिवादन रहा है। और जब हम यह लिख रहे हैं तो सबका। हिन्दू मुसलमान सबका। मुसलमानों ने कभी राम राम करने से परहेज नहीं किया। हमने पहले भी लिखा है कहीं शायद कि जब हम अपने शहर और बाग़ जाते थे तो सबसे ज्यादा यही अभिवादन होता था। बाग़ जो हमारा शहर से थोड़ा सा दूर काश्तकारों के इलाके में वहां तो सिर्फ राम राम ही होता था।
लेकिन जैसा कि अभी ग्वालियर में किया वकील अनिल मिश्रा ने लोगों को भड़काने के लिए जय श्री राम वैसा जब संघ और बीजेपी ने शुरू किया तो सबसे ज्यादा नुकसान राम राम का ही किया।
तेज आवाज में नारे की तरह और उससे भी ज्यादा चुनौती की तरह इसे बोला जाने लगा। इसकी मधुरता खतम कर दी। मगर बीजेपी संघ को इससे क्या मतलब उसे तो लगता है कि राम को भी मुसलमानों के खिलाफ प्रयोग किया जा सकता है।
एक से हमने पूछा कि जब राम थे तब क्या मुसलमान थे? उनसे कोई विरोध हुआ? घबरा गया। कोई जवाब नहीं था उसके पास।
जवाब है भी नहीं। राम पर उर्दू फारसी में पता नहीं कितना लिखा गया है। पहले तो दिवाली पर बताया जाता था। अब तो वह भी नहीं। फारसी में रामलीला होती थी, उर्दू में होती थी। सब बंद करवा दी। रामलीला में तमाम पात्र मुस्लिम होते थे। निकलवा दिए। यहां तक की आयोजन समिति में से भी। अभी ग्वालियर में ही बीजेपी के एक नेता गुड्डू वारसी (नूर आलम) को आयोजन समिति से हटा दिया गया।
सब हो रहा है। रामलीला देखने आने से अभी शायद उस तरह नहीं रोका क्योंकि बहुत खुला हुआ मैदान होता है मगर गरबा या इस तरह के और दूसरे आयोजनों में तो बाकायदा प्रतिबंध लगा दिया। कांवड़ के रास्ते में मुसलमानों के फलबेचने वालों तक को हटाया गया। कोई बोलने वाला नहीं।
मगर चलिए सीएसपी हिना खान पर खुश हैं तो यह अच्छी बात है। अफसर ऐसे ही होते हैं। भारत की प्रशासनिक व्यवस्था का दुनिया में बहुत सम्मान है। तमाम अंतरराष्ट्रीय अभियानों में यहां के अफसर जाते है और भारत का नाम उंचा करके आते हैं।
मगर अब हर जगह नफरत विभाजन, भेदभाव कर दिया गया। अच्छे अफसरों को नौकरी छोड़ने पर मजबूर होना पड़ता है। बीजेपी को न्यायपालिका, चुनाव आयोग से लेकर मीडिया, ब्यूरोक्रेसी सब जगह अपने आदमी चाहिए।
इन सबसे देश कैसे मजबूत होता है। विश्व गुरु बनता है। और यहां भी बड़ा संशय है कि वे विश्व गुरु बनने की बात खुद की करते हैं या देश की?
खैर जो भी हो। देश के लिए सोचने वाले, काम करने वाले अपना काम करते रहेंगे। और यह भी चाहते रहेंगे कि बीजेपी को भी नफरत विभाजन और भेदभाव से देश को होने वाले नुकसान समझ में आ जाएं।
