नई दिल्ली। परमाणु ऊर्जा का क्षेत्र निजी कंपनियों के लिए खोलने और परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए लाए गए सस्टेनेबल हार्नेसिंग ऑफ एटॉमिक एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया यानी शांति बिल को लोकसभा ने पास कर दिया है। बुधवार को शून्यकाल में परमाणु ऊर्जा राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बिल पर चर्चा शुरू की और बाद में चार घंटे से ज्यादा चली चर्चा का जवाब दिया। कांग्रेस पार्टी की ओर से मनीष तिवारी और शशि थरूर ने इस बिल के कई प्रावधानों का विरोध किया। डीएमके सांसद अरुण ने भी इस बिल का विरोध किया।
इससे पहले जितेंद्र सिंह बिल को बहुत महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी भाभा ने इसे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए समर्पित किया था, और अब इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में साकार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत को जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करनी होगी और परमाणु ऊर्जा उत्पादन बढ़ाना होगा।
मनीष तिवारी ने इस विरोध किया। उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत जवाहरलाल नेहरू ने की थी। उन्होंने डॉ. होमी जहांगीर भाभा के योगदान का जिक्र किया और फिर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत के पहले परमाणु परीक्षण ‘स्माइलिंग बुद्धा’ का भी जिक्र किया। उन्होंने यह भी कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के समय हुए परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर पाबंदियां लगाई गईं, जिसे मनमोहन सिंह की सरकार ने दूर कराया। हालांकि अब भी भारत लंदन क्लब या एनएसजी यानी न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप का सदस्य नहीं बन सका है।
पिछले कुछ समय सरकार का समर्थन कर रहे कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि शांति बिल में एक ऐसा प्रावधान है, जिसके तहत यदि जोखिम को नगण्य माना जाए तो केंद्र सरकार किसी भी संयंत्र को लाइसेंस या दायित्व से छूट दे सकती है। उन्होंने इसे खतरनाक बताते हुए कहा कि इससे एक बैकडोर बन जाती है। थरूर ने कहा कि यह प्रावधान पूरे नियामक ढांचे को कमजोर करता है, क्योंकि इसके जरिए सरकार जब सुविधाजनक समझे, तब किसी भी सुविधा को निगरानी और जवाबदेही से बाहर रखा जा सकता है।
